पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२६३

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हिंदी साहित्य उपदेश दिए थे, अतः हिंदी साहित्य पर उनका कोई स्पष्ट और प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं देख पड़ता।- महात्मा नामदेव ने देशभाषा का प्राश्रय लिया था परंतु घे महाराष्ट्र प्रांत के निवासी थे, इसलिये हिंदी में उनकी बहुत थोड़ी पाणी मिलती है। हिंदी में वैष्णव साहित्य के प्रथम कवि प्रसिद्ध मैथिल कोकिल विद्यापति हुए जिनकी रचनाएँ उत्कृष्ट कोटि की हुई। परंतु जय महात्मा रामानंद ने भक्ति को लोकव्यापक बनाकर और जाति- पाँति का भेद मिटाकर जनता की भाषा में अपने उपदेश दिए, तव हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि का विशेष अवसर प्राप्त हुया और बड़े बड़े महा- कवियों के आविर्भाव से उसका उत्कर्ष साधन हुआ। महात्मा रामा- • नंद की शिष्य-परंपरा में एक ओर तो कबीर हुए, जिन्होंने शानाश्रयी भक्ति का उपदेश देकर एक नवीन संप्रदाय खड़ा किया, और दूसरी ओर कुछ दिनों बाद महात्मा तुलसीदास हुए जिनकी दिव्यवाणी का हिंदी को सबसे अधिक गर्व है। इसी समय भारतीय अद्वैतवाद तथा सूफी प्रेमयाद के सम्मिश्रण से हिंदी में फुतुबन, जायसी आदि प्रेमगाथाकारों का भी आविर्भाव हुश्रा जिनकी रचनाओं से हिंदी साहित्य को कम लाभ नहीं पहुंचा। महात्मा वल्लभाचार्य और उनके पुत्र विट्ठलनाथ को प्रेरणा से सूरदास नादि कृष्ण-भक्त कवियों का आविर्भाव भी इसी काल में हुआ। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ओर तो कवीर आदि संत कवियों की परंपरा चली और दूसरी ओर महात्मा तुलसीदास की राम- भक्ति का मार्ग प्रशस्त हुया। साथ ही जायसी श्रादि की प्रेमगाथाएँ भी रची गई और महाकवि सूरदास जैसे कृष्ण-भक्त कवियों का संप्रदाय भी चला। यद्यपि इस अध्याय में हम कवीर श्रादि संत कवियों की निर्गुण भक्तिपरंपरा का ही विवेचन करेंगे, पर इसके पहले हम संक्षेप में हिंदी के भक्तियुग के मुख्य मुख्य कवि-संप्रदायों और उनकी मुख्य मुख्य विशेष- ताओं पर विचार कर लेंगे। __काल की पूर्वापरता का ध्यान रखते हुए हम यह कह सकते हैं कि विद्यापति ही हिंदी में भक्ति कान्य के प्रथम बड़े कवि हैं। उनकी म रचनाएँ राधा और कृष्ण के पवित्र प्रेम से श्रोत- " प्रोत हैं जिनसे कवि की भावमग्नता का परिचय मिलता है। यद्यपि संयोग श्रृंगार का वर्णन करते हुए विद्यापति कहीं कहीं असंयत भी हो गए हैं, पर उनकी अधिकांश रचनाओं में भावधारा यहुत ही निर्मल और सरस हुई है। यह सब होते हुए भी विद्यापति के पीछे हिंदी में थोड़े दिनों तक कृष्णभक्ति की कविता नहीं हुई। हमारा अनुमान है कि उस समय विद्यापति की कविता का उत्तर भारत में