पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२६७

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२६६ हिंदी साहित्य राम का लोकरंजक स्वरूप उनके लोकरक्षक तथा अनिष्टनाशक स्वरूप के पीछे रख दिया है। जो समालोचक गोस्वामीजी का यह भाव न समझकर उनको वर्णित राम की पाल-लीला की तुलना सूरदास श्रादि करियों के बाल-लीला-वर्णन से करते हैं, वे गोस्वामीजी के साथ अन्याय करते हैं। गोस्वामीजी लोक-धर्म के कट्टर समर्थक थे और उनके राम भी वैसे ही प्रदर्शित किए गए हैं। जनता इस नवीन भक्ति-मार्ग की ओर बड़ी उत्सुकता से खिंची और रामभक कवियों की परंपरा भी चली। परंतु यह कहना पड़ता है कि गोस्वामीजी ने अपनी अद्भुत प्रतिभा से हिंदू जनता तथा हिंदी साहित्य में जो पालोक फैला दिया था, उसके कारण अन्य.रामभक कवि चकाचौंध में पड़ गए और जनता उन्हें यहुत कम देख और समझ सकी। प्रसिद्ध वीरशिरोमणि हम्मीरदेव के पतन के उपरांत हिंदी साहित्य में वीरगाथाओं की रचना शिथिल पड़ गई थी। हिंदुओं की कबीरआदि के आवि. सारी श्राशाएँ मिट्टी में मिल गई थीं, वे अपनी प्रशंसा सुनने का साहस भी नहीं कर सकते थे। पास तैमूर के आक्रमण ने देश को जहां तहाँ उजाड़कर नैराश्य की चरम सीमा तक पहुँचा दिया। हिंदू जाति में से जीवन- शक्ति के सब लक्षण मिट गए। विपत्ति की सीमा पर पहुँचकर मनुष्य पहले तो परमात्मा की ओर ध्यान लगाता है, और अपने कप्टरों से प्राण पाने की श्राशा करता है, पर जव स्थिति में सुधार नहीं होता तव पर- मात्मा की भी उपेक्षा करने लगता है-उसके अस्तित्व पर भी उसका विश्वास नहीं रह जाता। कवीर श्रादि संत कवियों के जन्म के समय हिंदू जाति की यही दशा हो रही थी। वह समय और परिस्थिति ननी- श्वरवाद के लिये बहुत ही उपयुक्त थी। यदि उसकी लहर चल पड़ती तो उसका रुकना कदाचित् कठिन हो जाता। परंतु कधीर नादि ने बड़े ही कौशल से इस अवसर से लाभ उठाकर जनता कोभक्तिमार्ग की अोरप्रवृत्त किया और भक्ति-भाव का प्रचार किया। प्रत्येक प्रकार की भक्ति के लिये जनता इस समय तैयार नहीं थी। मूर्तियों की अशक्तता वि० सं० १००१ में बड़ी स्पष्टता से प्रकट हो चुकी थी, जय कि महमूद गजनवी ने श्रात्मरक्षा से विरत, हाथ पर हाथ रखे हुए श्रद्धालुओं के देखते देखते सोमनाथ का मंदिर नष्ट करके उनमें से हजारों को तलवार के घाट उतारा था और लूट में अपार धन प्राप्त किया था। गजेंद्र की एक ही टेर सुनकर दौड़ आनेवाले और ग्राह से उसकी रक्षा करनेवाले सगुण भगवान् जनता के घोर से घोर संकट-काल में भी उसकी रक्षा के लिये श्राते हुए न