पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२७१

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२७० हिंदी साहित्य के मनगढंत चित्र बनाकर उनकी पूजा होने लगी है और सुमिरनी आदि का प्रचार हो गया है। यद्यपि आगे चलकर निर्गुण संत मतों का वैष्णव संप्रदायों से बहुत भेद हो गया, तथापि इसमें संदेह नहीं कि संतधारा का उद्गम भी वैष्णव भक्तिरूपी स्रोत से ही हुआ है। श्रीरामानुज ने संवत् ११४४ में यादवाचल पर नारायण की मूर्ति स्थापित करके दक्षिण में वैष्णव धर्म का प्रवाह चलाया था, पर उनकी भक्ति का श्राधार ज्ञानमार्गी अद्वैतवाद था। उनका अद्वैत, विशिष्टाद्वैत हुआ। गुजरात में मध्वाचार्य ने द्वैतमूलक वैष्णव धर्म का प्रवर्तन किया। जो कुछ कहा जा चुका है, उससे पता चलेगा कि संतधारा अधिकतर शानमार्ग के ही मेल में रही। पर उधर बंगाल में महाप्रभु चैतन्यदेव और उत्तर भारत में वलभाचार्यजी के प्रभाव से भक्ति के लिये परमात्मा के सगुण रूप की प्रतिष्ठा की गई, यद्यपि सिद्धांत रूप से शान-मार्ग का त्याग नहीं किया गया। और तो और, तुलसीदासजी तक ने ज्ञानमार्ग की बातों का निरूपण किया है, यद्यपि उन्होंने उन्हें गौण स्थान दिया है। संतों में भी कहीं कहीं अन- जान में सगुणवाद पा गया है, और विशेषकर कबीर में, क्योकि गुणों का श्राश्रय लेकर ही भक्ति की जा सकती है। शुद्ध ज्ञानाश्रयी उपनि- पदों तक में उपासना के लिये ब्रह्म में गुणों का अारोप किया गया है। फिर भी तथ्य की बात यह जान पड़ती है कि जब वैष्णव संप्रदायों ने श्रागे चलकर व्यवहार में सगुण भक्ति का आश्रय लिया, तव भी संत मतों ने शानाश्रयी निर्गुण भक्ति से ही अपना संबंध रखा। संत कवियों के धार्मिक सिद्धांतों और सामाजिक व्यवस्था के संबंध में उपर्युक्त बातें कहकर उनके व्यावहारिक सिद्धांतों पर भी ध्यान र देना श्रावश्यक है। क्योंकि इन कवियों ने इतने का प्रभावोत्पादक ढंग से सरल सदाचारपूर्ण लौकिक जीवन का उपदेश दिया और स्वयं इतनी सच्चाई से उसका पालन किया कि जनता पर उन उपदेशों का विशेष प्रभाव पड़ा और तत्कालीन सामा- जिक दंभ बहुत कुछ कम हुअा। उन्होंने देसा कि लोग नाना प्रकार के अंधविश्वासों में फंसकर हीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इमी से उन्हें मुक्त करने का उन्होंने प्रयत्न किया। मुसलमानों के रोजा, नमाज, हज, ताजिएदारी और हिंदुओं के श्राद्ध, एकादशी, तीर्थव्रत, मंदिर सयका उन्होंने विरोध किया। इस बाहरी पाडयर के लिये उन्होंने हिंदू मुसलमान दोनों को सूय फटकार घतलाई। धर्म को घे याडंवर से परे एक मात्र सत्य सत्ता मानते थे जिसमें हिंदू मुसलमान आदि