पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा २७३ की माता, पिता, स्वामी, सखा तथा पुत्र श्रादि रूपों में भी उपासना की गई है। "हरि जननी मैं वालिक तेरा" कहकर कवीर ने हरि को माता घतलाया है। इसी :भांति अन्य रूपकों द्वारा भी ब्रह्म और जीव के संबंधों की व्यंजना की गई है। ये सभी संबंध भावना में रहस्यात्मक हैं क्योंकि लौकिक अर्थ में तो परमात्मा पिता, माता, प्रिया, प्रियतम आदि कुछ भी नहीं। ऐसे ही कहीं "वै दिन कय श्रागे भाइ। जा . कारनि हम देह धरी है मिलियो अंग लगाइ" कहकर परमात्मा से जीवात्मा के वियुक्त होने, और कहीं "मो को कहाँ हूँ? वंदे मैं तो तेरे पास में" कहकर दोनों के मिल जाने श्रादि का संत कवियों ने बड़े ही रहस्यात्मक ढंग से वर्णन किया है। ___ शुद्ध साहित्यिक दृष्टि से देखने पर भी हम संत कवियों का एक विशेष स्थान पाते हैं। यह ठीक है फि विहारी और केशव श्रादि की सी साहित्यिक समीक्षा . भाषा की प्रांजलता का अभिमान ये कवि नहीं कर ॥ सकते और न सूर और तुलसी की सी सरसता और व्यापकता ही इनकी कविता में पाई जाती है। जायसी ने प्रकृति के नाना रूपों के साथ अपने हृदय की जैसी एकरूपता दिखाई है, अनेक निर्गुण संत कवि उतनी सफलता से वह नहीं दिखा सके। यह सब होते हुए भी इन कवियों का स्थान हिंदी साहित्य में अत्यंत उत्कर्पपूर्ण तथा उच्च समझा जायगा। भापा की प्रांजलता कम होते हुए भी उसमें प्रभावोत्पादकता बहुत अधिक है और उनकी तीव्रता से भावों में व्याप- कता की बहुत कुछ कमी हो जाती है। उनके संदेशों में जो महत्ता है, उनके उपदेशों में जो उदारता है, उनकी सारी उक्तियों में जो प्रभावोत्पा- दकता है वह निश्चय ही उच्च कोटि की है। कविता के लिये उन्होंने कविता नहीं की है। उनकी विचारधारा सत्य की खोज में यही है, उसी का प्रकाश करना उनका ध्येय है। उनकी विचारधारा का प्रवाह जीवन-धारा के प्रवाह से भिन्न नहीं। उसमें उनका हृदय धुला मिला है। उनकी प्रतिभा हृदय-समन्वित है। उनकी बातों में ऐसा वल है जो दूसरों पर प्रभाव डाले विना नहीं रह सकता। हार्दिक उमंग की लपेट में जो सहज विदग्धता उनकी उक्तियों में श्रा गई है, वह अत्यंत भावापन्न है। उसी में उनकी प्रतिभा का चमत्कार है। शब्दों के जोड़-तोड़ से चमत्कार लाने के फेर में पड़ना उनको प्रकृति के प्रति- कूल था। दूर की सूझ जिस अर्थ में केशव विहारी आदि कवियों में मिलती है, उस श्रर्थ में उनमें मिलना असंभव है। प्रयत उनकी कविता में कहीं देख नहीं पड़ता।