पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२७५

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२७४ • हिंदी साहित्य । अब हम कुछ प्रसिद्ध प्रसिद्ध संत कवियों की वैयक्तिक विशेष- ताओं का संक्षेप में उल्लेख करते हैं। श्रय तक के अनुसंधानों के अनुसार महात्मा फवीरदास का जन्म संवत् १४५६ और मृत्यु संवत् १५७५ माना जाता है। यद्यपि निश्चय- पूर्वक नहीं कहा जा सकता, फिर भी सब बातों पर

कबीर

चार विचार करने से इस मत के ठीक होने की अधिक संभावना है कि ये ब्राह्मणी या किसी हिंदू स्त्री के गर्भ से उत्पन्न बार मुसलमान परिवार में लालित पालित हुए। कदाचित् उनका बाल्य- काल मगहर में बीता था और के पीछे से काशी में आकर बसे थे जहाँ से अंतकाल के कुछ पहले उन्हें पुनः मगहर जाना पड़ा हो। प्रसिद्ध स्वामी रामानंद को उन्होंने अपना गुरु स्वीकार किया था। कुछ लोगो का यह भी मत है कि उनके गुरु शेख तकी नामक कोई सूफी मुसलमान फकीर थे। धर्मदास और सुरत गोपाल नाम के उनके दो चेले हुए । कवीर की मृत्यु के पीछे धर्मदास ने छत्तीसगढ़ में कवीरपंथ की एक अलग शाखा चलाई और सुरत गोपाल काशीवाली शाखा की गद्दी के अधिकारी हुए। फवीर के साथ प्रायः लोई का नाम भी लिया जाता है। संभवतः लोई उनकी पत्नी और कमाल उनका पुत्र था।

कबीर पहुश्रुत थे। उनको सत्संग से वेदांत, उपनिषदों और

पौराणिक कथाओं का थोड़ा बहुत ज्ञान हो गया था परंतु घेदों का उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं था। योग की क्रियाओं के विषय में उन्हें जानकारी थी। इंगला, पिंगला, सुपुम्ना, पटचक्र श्रादि का उन्होंने उल्लेख किया है, पर वे योगी नहीं थे। उन्होंने योग को भी माया में सम्मिलित किया है। उन्होंने केवल हिंदू और मुसलमान धर्मों का मुख्यतया उल्लेख किया है, पर अन्य धर्मों से भी उनका परिचय था। कबीरदास सरल जीवन के पक्षपाती तथा अहिंसा के समर्थक थे। उन्होंने शास्त्रों की घड़ी निंदा की है। जैसे कबीर का जीवन संसार से ऊपर उठा हुआ था, वैसे ही उनका काव्य भी साधारण कोटि से ऊँचा है। अतएव सीखकर प्राप्त की हुई रसिकता को उनमें काव्यानंद नहीं मिलता। परंपरा से बंधे हुए लोगों को काव्य-जगत् में भी इंद्रिय-लोलुपता का अखाड़ा खड़ा करना अच्छा लगता है। कबीर ऐसे लोगों की परितुष्टि की परवा कैसे कर सकते थे, जिनको निरपेक्षी के प्रति होनेवाला उनका प्रेम भी शुष्क लगता है ? प्रेम की पराकाष्ठा आत्मसमर्पएका मानो काव्य जगत में फोई मूल्य ही नहीं है।