पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२७८

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भक्तिकाल की शानाश्रयी की शाखा २७७ निर्गुण संत कवियों में प्रचार की दृष्टि से, प्रतिभा की दृष्टि से तथा कवित्व की दृष्टि से भी कवीर का स्थान सर्वोपरि है, उनके पीछे के प्रायः सब संतों ने अधिकतर उनका ही अनुगमन किया है। प्रसिद्ध सिख संप्रदाय के संस्थापक तथा प्रथम गुरु नानकजी जाति के खत्री थे। इनके पिता कालूचंद खत्री लाहौर के निवासी थे। इन्होंने प्रारंभ में वैवाहिक जीवन व्यतीत किया नानकदेव था और इन्हें श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी हुए थे। गुरु नानक ने घर बार छोड़कर जव संन्यास ग्रहण किया, तब कहा जाता है कि उनकी भेट महात्मा कवीर से हुई थी। कवीर के उपदेशों का उन पर विशेष प्रभाव पड़ा था। उनके ग्रंथ साहब में कवीर की वाणी भी संगृहीत है। नानकजी पंजाब के निवासी थे और पंजाब मुसलमानों का प्रधान केंद्र था। इसलाम और हिंदू धर्म के संघर्ष के कारण पंजाय में जो अशांति फैलने की आशंका थी, उसे नानकजी ने दूर करने का सफल प्रयास किया। उनकी वाणी में हिंदुओं और मुसलमानों के विचारों का मेल प्रशंसनीय रीति से हुआ है। __ कबीर की ही भांति नानक भी अधिक पढ़े लिखे नहीं थे, पर साधुनों के संसर्ग तथा पर्यटन के अनुभव से नानक के उपदेशों में एक प्रकार की विशेष प्रतिभा तथा प्रभावोत्पादकता पाई जाती है। वास्तव में इन संत कवियों की वाणी उनकी आत्मा की वाणी है। अतः उसका प्रभाव सीधा हृदय पर पड़ता है। यह ठीक है कि काव्य की कृत्रिम दृष्टि से नानक की कविता साधारण कोटि की ही समझी जायगी, परंतु कला में जो स्वाभाविकता तथा तीव्रता अपेक्षित होती है, नानक में उसकी कमी नहीं है। महात्मा नानक की भाषा में पंजावीपन स्पष्ट देख पड़ता है, जो उनके पंजावनिवासी होने के कारण है। परंतु साथ ही अन्य प्रांतीय प्रयोग भी कम नहीं है, जो उनके पर्यटन के परिचायक हैं।नानक के पद प्रसिद्ध सिख ग्रंथ "ग्रंथ साहव में एकत्र किए गए हैं। यह ग्रंथ सिखों का धर्मग्रंथ है और अत्यंत पूज्य दृष्टि से देखा जाता है। । दादूदयाल का जन्म संवत् १६०१ में गुजरात के अहमदावाद नामक स्थान में बतलाया जाता है। इनकी जाति का ठीक ठीक पतानहीं चलता। __ कुछ लोग इन्हें ब्राह्मण बतलाते हैं और कुछ इन्हें दादूदयाल .मोची या धनिया मानते हैं। संभवतः ये नीची जाति के ही थे। ये स्पष्टतः कवीर के शिष्य तो नहीं थे, पर इन्होंने अपने सभी सिद्धांतों को कवीर से ही ग्रहण किया है। दादू का एक अलग संप्रदाय चला था और अब मी अनेक दादूपंथी पाए जाते हैं। इनकी मृत्यु