पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८

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श्राधुनिक भाषाएँ इस प्रकार हम ग्रियर्सन और चैटर्जी के नाम से दो पक्षों का उल्लेख कर रहे है-एक अंतरंग और बहिरंग के भेद को ठीक मानने- वाला और दूसरा उसका विरोधी। पर साधारण विद्यार्थी के लिये चैटर्जी का वर्गीकरण स्वाभाविक और सरल ज्ञात होता है; क्योंकि प्राचीन काल से आज तक मध्यदेश की ही भाषा सर्वप्रधान राष्ट्रभाषा होती आई है, अतः उसे अर्थात् 'पश्चिमी हिंदी' (अथवा केवल 'हिंदी') को केंद्र मानकर उसके चारों ओर के चार भाषा-वर्गों की परीक्षा करना सुविधाजनक होता है। इसी से स्वयं ग्रियर्सन ने अपने अन्य लेखों में सर्वप्रथम 'हिंदी' को मध्यदेशीय वर्ग मानकर वर्णन किया है और दूसरे वर्ग में उन भाषाओं को रखा है जो इस मध्यदेशीय भाषा (हिंदी) और बहिरंग भाषाओं के बीच में अर्थात् सीमांत पर पड़ती हैं। इस प्रकार उन्होंने नीचे लिखे तीन भाग किए हैं- फ. मध्यदेशीय भापा १-हिंदी (हिं०) ख. अंतर्वर्ती अथवा मध्यग भाषाएँ ___- (अ) मध्यदेशीय भाषा से विशेष घनिष्ठतावाली २-पंजावी (पं०) ३-राजस्थानी (रा०) ४-गुजराती (गु०) ५-पूर्वी पहाड़ी, खसकुरा, अथवा नेपाली (पू०प०) - ६-केंद्रस्थ पहाड़ी (के० प०) ७-पश्चिमी पहाड़ी (प० प०) (भा) यहिरंग भाषाओं से अधिक संवद्ध ८-पूर्वी हिंदी (पू० हिं०) ग. चहिरंग भाषाएँ- (अ) पश्चिमोत्तर वर्ग ६-लहँदा (ल.) १०-सिंधी (सिं०) (श्रा ) दक्षिणी वर्ग ११-मराठी (म०) (इ) पूर्वी घर्ग १२-विहारी (वि०) १३-उड़िया (उ०) १४-बंगाली (५०)