पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८२

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प्रेममार्गी भक्ति शाखा २८१ उसके हृदय में शांति के प्रति अनुराग होता है। उसे विरोध उतना अच्छा नहीं लगता। जहाँ तक हो सकता है, मनुष्य विपक्षियों से भी प्रेम-पूर्वक व्यवहार करता है। यही मनुष्य की मनुष्यता है। इसी मनुष्यता का परिचय कवीर श्रादि महात्माओं ने मुसलमानी शासन के आदिकाल में दिया था। जय हिंदू और मुसलमान दोनों साथ ही यस गए और साथ ही रहने लगे, तब विरोध के आधार पर सामाजिक प्रगति नहीं हो सकती थी। दोनों को मिलकर रहने की उत्सुकता हुई। यद्यपि विजयो मुसलमान शासक अपने विजयोन्माद में धार्मिक नृशंसता के पक्के उदाहरण बन रहे थे, पर साधारण जनता उनकी सी कठोर मनोवृत्ति धारण न कर मेल की ओर बढ़ रही थी। कवीर ने मेल की बड़ी प्रवल प्रेरणा की थी। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को यह समझाने का प्रयत किया कि हमको उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर एक है, केवल नामभेद से अशानवश हम उसे भिन्न भिन्न समझा करते हैं। धार्मिक विवाद व्यर्थ है, सब मार्ग एक ही स्थान को जाते हैं। इस प्रकार कधीर ने परोक्ष सत्ता की एकता स्थापित की। थोड़े समय पीछे कवियों का एक समुदाय ऐसा भी उदय हुआ जिसने व्यावहारिक जीवन की एकता की ओर अधिक ध्यान दिया। यह समुदाय सूफी कवियों का था जो प्रेमपंथ को लेकर चला था। सूफियों का प्रेम लौकिक नहीं था, परोत के प्रति था। यद्यपि इसलाम धर्म के अनुसार सूफियों के परोक्ष को भी निराकार ही रहना पड़ा, परंतु अपने उत्कट प्रेम तथा उदार हृदय के कारण सूफी संप्रदाय में अव्यक्त परोन सत्ता को बहुत कुछ व्यक्त स्वरूप भी मिला। सूफी उस परमेश्वर की उपासना करते थे जो निर्गुण और निराकार तो है परंतु अनंत प्रेम का भांडार भी है। साथ ही धार्मिक प्रतिबंध के कारण सूफी कवि अपने उपास्य देव के प्रेम के संबंध में स्पष्टतः कुछ भी नहीं कह सकते थे, अतः उन्होंने प्रेम-संबंधी अनेक आख्यानों का सृजन किया और उन लौकिक श्राख्यानों को सहायता से ईश्वर के प्रेम की अभि- व्यंजना की। यह अभिव्यंजना संकेत के ही रूप में की गई, और इसी से हिंदी में रहस्यात्मक कविता की सृष्टि हुई। सूफियों के रहस्यवाद के संबंध में तो हम आगे चलकर कहेंगे, यहाँ इतना समझ लेना चाहिए कि सूफी कवियों के प्राण्यान अधिकतर कल्पित होते थे पर कमी कमी उनमें ऐतिहासिक घटनाओं का भी समावेश होता था। वास्तव में ये अव्यक्त के प्रति प्रेमाभिव्यंजन के उपयुक्त कथानक का इच्छानुसार सृजन करते थे, और ऐतिहासिक तथ्यों का वहीं तक समावेश करते थे जहाँ