पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८४

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प्रेममार्गी भक्ति शाखा । २८३ कुमार तथा कंचन नगर की राजकुमारी मृगायती की प्रेमगाथा इसमें अंकित की गई है।) प्रेम-मार्ग के कप्ट तथा त्याग आदि का वर्णन करते हुए कुतवन ने अज्ञात की प्राप्ति के कष्टों का आभास दिया है। मृगावती के उपरांत दूसरी प्रेमगाथा मधुमालती लिखी गई जिसकी एक खंडित प्रति खोज में मिली है। इसके रचयिता मंझन बड़े ही सरस हृदय कवि थे। इन्होंने प्रकृति के दृश्यों का बड़ा ही मर्मस्पर्शी वर्णन किया है और उन दृश्यों के द्वारा अव्यक्त की ओर बड़े ही मधुर संकेत किए हैं। प्रेमगाथाकारों में सबसे प्रसिद्ध कवि जायसी हुए जिनका पद्मावत काव्य हिंदी का एक जगमगाता रत्न है। इस काव्य में कवि ने ऐति- हासिक तथा काल्पनिक कथानकों के संयोग से बड़ी ही रोचकता ला दी है। इसमें मानव हृदय के उन सामान्य भावों के चित्रण में बड़ी ही उदारता तथा सहानुभूति का परिचय दिया गया है जिनका देश और जाति को संकीर्णताओं से कुछ भी संबंध नहीं। प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करते हुए कवि की तन्मयता इतनी बढ़ जाती है कि वह अखिल दृश्य जगत् को एक निरंजन ज्योति से श्राभासित पाता और श्रानंदातिरेक के कारण उसके साथ तादात्म्य का अनुभव करता है। जायसी के उप- रांत उसमान, शेख नबी, नूरमुहम्मद आदि अनेक प्रेमगाथाकार हुए पर पद्मावत का सा विशद् काव्य फिर नहीं लिखा गया । सगुणोपासक तुलसी, सूर श्रादि भक्त कवियों के आविर्भाव से प्रेमगाथाकारों की शक्ति यहुत कुछ क्षीण पड़ गई थी। उपर्युक्त प्रेमगाथाओं में बहुत सी बातें मिलती जुलती है। एक तो इनकी रचना भारतीय चरितकाव्यों की सर्गवद्ध शैली में न होकर फारसी की मसनवियों के ढंग पर हुई है। जिस प्रकार फारसी की मसनवियों में ईश्वरवंदना, मुहम्मद साहब की स्तुति, तत्कालीन राजा फी प्रशंसा श्रादि कथारंभ के पहले होते थे, उसी प्रकार इनमें भी हैं। प्रेमगाथाओं की भाषा भी प्रायः एक सी है। यह भाषा अवध प्रांत की है। इन प्रेम की पीर के कवियों का प्रधान केंद्र अवध की भूमि ही थी। छंदों के प्रयोग में भी इस समुदाय के कवियों में समानता पाई जाती है। सबने प्रायः दोहों और चौपाइयों में ही ग्रंथरचना की है। ये छंद अवधी भाषा के इतने उपयुक्त हैं कि महाकवि तुलसीदास ने भी अपने प्रसिद्ध रामचरितमानस में इन्हीं छंदों का प्रयोग किया है। चौपाई छंद तो मानों अवधी भापा के लिये ही बनाया गया हो, क्योंकि.' ब्रजभापा के कवियों ने इस छंद का सफलतापूर्वक उपयोग कभी किया ही नहीं। समता की अंतिम बात यह है कि प्रेमगाथाकार सभी कवि