पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८९

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हिंदी साहित्य दूसरी यात भाव-व्यंजना की है। भारतीय काव्य-समीक्षा में रति, शोक, उत्साह, क्रोध श्रादि नौ स्थायी भाव माने गए हैं तथा इन्हें पुष्ट करनेवाले असूया, गर्व, नीड़ा आदि कई संचारी भावों की कल्पना की गई है। कवि की दृष्टि जितनी ही व्यापक होगी वह उतने ही अधिक विस्तृत तथा उत्कर्षपूर्ण ढंग से भावों की व्यंजना करेगा। किन प्रसंगों में कैसे भावों की कितनी तीव्रता दिखानी चाहिए, इसका ध्यान भी कवियों को रखना पड़ता है। हिंदी के सूफी कवियों की दृष्टि घड़ी व्यापक और तीव है। वे कहीं कहीं बड़े ही सूक्ष्म भाषों तक अपनी पहुँच दिखाते हैं। उनके रति तथा शोक श्रादि के वर्णन अधिक भाव- पूर्ण हुप हैं। जायसी ने युद्धोत्साह की भी अच्छी झलक दिखलाई है। फिर भी हमको यह स्वीकार करना पड़ता है कि जीवन को व्यापक रीति से देखकर विविध भावों का सनिवेश करने में ये कवि उतने सफल नहीं हुए जितने महाकवि तुलसीदास हुए, और न उनकी अंत- दृष्टि उतनी सूक्ष्म है जितनी महात्मा सूरदास की। परंतु इससे उनकी महत्ता कम नहीं होती, क्योंकि तुलसीदास और सूरदास तो हिंदी के दो अन्यतम कवि हैं, इनको समता न कर सकने में सूफी कवियों के गौरव में कमी नहीं पड़ती। इन दोनों को छोड़कर विचार करने पर प्रेममार्गी कवियों की भाव-व्यंजना हिंदी के अन्य बड़े कवियों की तुलना में उच्च स्थान की अधिकारिणी है। अलंकार, छंद, भापा श्रादि साहित्यिक समीक्षा के प्रश्नों पर हम पीछे विचार करेंगे, पहले प्रेममार्गी कवि-संप्रदाय के मतों और सिद्धांतों मनोरमकान को संक्षेप में समझ लेना ठीक होगा। ये कवि मुसलमानों के सूफी मत के माननेवाले थे। सूफी मत का प्रचलन मुहम्मद की मृत्यु के उपरांत दूसरी या तीसरी शताब्दी में हुआ था। इस मत के विकास में अनेक बाहरी प्रभाव सहायक हुए थे जिनमें मुख्य भारतीय अद्वैतवाद था। प्रारंभ में सूफी संप्रदाय सामान्य मुसलमान धर्म की एक शाखा विशेष था जिसमें सरल जीवन व्यतीत करने की प्रवृत्ति थी। पीछे से इसमें चिंतनशीलता बढ़ी और इसके अनुयायी ईश्वर के संबंध में सूक्ष्म तत्त्वों का अनुसंधान करने लगे। मुसलमानों के मत में तो ईश्वर एक है, विश्व का स्रष्टा है और सवका मालिक है। स्रष्टा और मालिक होने में यद्यपि शारीरिकता का बोध होता है,.पर मुसलमानों के खुदा घरावर निराकार ही पने रहे। परंतु सूफियों के चिंतन से उनमें एक नए मत का सृजन हुश्रा । सूफी मुसलमानी एकेश्वरवाद से ऊँचे उठे और जीव तथा जगत् को