पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२९२

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२६२ हिंदी साहित्य उचित न होगा। चौपाइयों के अंत में हस्व तथा दीर्घ दोनों का समा- वेश करके तथा दोहों में यति को विभिन्न स्थानों में रखकर मनोविनोद फा साधन उपस्थित किया गया है। इसके अतिरिक्त छंदों की एकरूपता भावों की प्रचुरता के सामने बहुत कुछ दब जाती है। एक और बात यहाँ जान लेना आवश्यक है। चौपाई में, जैसा कि उसके नाम से ही विदित होता है, चार पद होने चाहिएँ। पर इन मुसलमान कवियों ने उसे दो ही पदों का माना है क्योंकि प्रत्येक दोहे के बीच में जितनी चौपाइयाँ आई हैं, उनकी संख्या सम नहीं है। कहीं छः द्विपदियों पर, कही सात द्विपदियों पर और कहीं आठ विपदियों पर दोहे दिए गए हैं। तुलसीदासजी ने अपने रामचरितमानस में इन द्विपदियों की संख्या भी सब स्थानों पर एक सी नहीं रखी है। अलंकारों में अर्थवाले प्रधान हैं, शब्दवाले प्रधान । प्रेममार्गी फवियों ने शब्दालंकारों पर बहुत ही कम ध्यान दिया है-प्रायः कुछ भी नहीं। उनकी यह निरपेक्षता खटकने की सीमा तक पहुँच जाती है। परंतु इसकी कमी अर्थालंकारों में पूरी करने की चेष्टा की गई है जो सफल भी हुई है। इन कचियों ने सादृश्यमुलक उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। जायसी को हेतू- स्प्रेक्षा सयसे अधिक प्रिय है। हेतूत्येक्षा की सहायता से घे अपनी साधारण अनुभूतियों को व्यक्त करने में, अथवा उनकी ओर संकेत करने में सफल हुए हैं। कहीं कहीं अलंकारों का ऐसा सम्मिश्रण भी किया गया है जिससे उन कवियों में सूक्ष्म शास्त्रीय अभिशता का अभाव लक्षित होता है पर अधिकांश स्थलों में सुंदर अलंकार प्राय हैं। शब्द की लाक्षणिक शक्ति का प्रचुर उपयोग भी मिलता है। इन कवियों के प्रायः सय काव्य व्यंजना से युक्त हैं। उनकी व्यंजना परमार्थ तत्व की और है, और कहीं कहीं काव्य-धारा में पाई हुई समासोक्तियाँ वास्तव में अनुपम हुई है। सारांश यह कि श्रीलंकार प्रायः प्रसंगानुकूल और उपयोगी है, केशव तथा अन्य भंगारी कवियों की भौति भरती के नहीं। सुफी कवियों की भापा श्रवध की हिंदी है। हिंदी के धीरगाथा काल में कविता का क्षेत्र राजपूताने का पश्चिमी प्रांत तथा दिल्ली के भाषा आसपास की भूमि था, अतएव उस काल की रच- ' नानों में वहीं की भाषा का अधिक प्रयोग हुश्रा। चह भाषा शौरसेनी प्राकृत तथा नागर अपभ्रंश से निकलकर उसी समय हिंदी में पाई थी; अतः तब तक वह बहुत कुछ उखड़ी हुई, असंयत और मही थी। व्याकरण के नियमों का अनुशासन तो दूर रहा, उसमें विल.