पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२९५

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२६५ उसमान प्रेममार्गी भक्ति शाखा मलिक मुहम्मद ने अपने पूर्व के जिन उपास्यानों के नाम दिए हैं उनके अनुसार इनके निर्माण का क्रम यह होता है-सपनावती, मुगधा- चती, मृगावती, मधुमालती, प्रेमावती। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि मृगावती के पहले सपनावती और मुगधावती नाम के दो काव्य रचे गए थे और मधुमालती के अनंतर प्रेमावती की रचना हुई होगी। इसके अनंतर पद्मावत की रचना हुई। इनमें से केवल मृगा- चती और मधुमालती का पता चला है पर खेद का विषय है कि मृगायती की प्रति अब प्राप्य नहीं है और मधुमालती खंडित मिली है। जायसी के कुछ फाल उपरांत जव तुलसीदास का आविर्भाव हुआ तव सूफियों की कविता क्षीण हो चली। हिंदुओं की सगुण भक्ति के प्रवाह में सूफियों को निर्गुण भक्ति स्थिर न रह सकी। उसमान जहांगीर के समकालीन कवि थे। ये शाह निजामुद्दीन चिश्ती की शिप्यपरंपरा में थे, हाजी यावा इनके गुरु थे। संवत् १६७० में इनका चित्रावली नामक काव्य लिखा गया। सभी प्रेमगाथाओं की भांति इसमें भी पैगंवर, गुरु आदि की चंदना है और यादशाह जहांगीर को भी स्मरण किया गया है। चित्रावली में जायसी के पद्मावत का अत्यधिक अनुकरण किया गया है, अंतर इतना ही है कि उसकी कहानी विलकुल काल्पनिक है और जायसी की कहानी का कुछ ऐतिहासिक आधार है। कवि ने चित्रावली में अँगरेजों के देश का भी एक स्थान पर नाम लिया है जिससे पता चलता है कि उस समय अँगरेज यहाँ श्रा गए थे और उस- मान को इसका पता था। जायसी की ही भांति इन्होंने भी ग्रंथ में नगर,यात्रा, पडऋतु श्रादि का वर्णन किया है और ईश्वर की प्राप्ति की साधना की ओर संकेत किया है। फिर भी पद्मावत की सी विशद वर्णना इसमें कम ही मिलती है, उसके अनुकरण की छाप इसमें देख पड़ती है। उसमान के उपरांत शेख नयी हुए परंतु इनके उपरांत प्रेममार्गी फवि-संप्रदाय प्रायः निर्जीव सा हो गया। यद्यपि कासिमशाह, नूर- मुहम्मद, फाजिलशाह श्रादि कवि होते रहे, पर उनकी रचनाओं में इस संप्रदाय का हास साफ योलता सा जान पड़ता है। हाँ, नूरमुहम्मद की "इंद्रावती" की प्रेमकहानी अवश्य सुंदर बन पड़ी है। यह संवत् १८०१ में लिखी गई थी। __क्या भावों के विचार से और क्या भाषा के विचार से सूफी __. कवियों ने हिंदी को पहले से बहुत आगे बढ़ाया। वीरगाथा काल में