पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६६ हिंदी साहित्य केवल वीरोल्लासपूर्ण कविता का सृजन हुश्रा, वह भी परिणाम में अधिक नहीं। उस काल की भाषा तो विलकुल अविकसित थी। अक्खड़ .. कवियों के हाथ में पड़कर वह और भी भोंडी बन उपसंहार • सर गई। उसके उपरांत फवीर का समय पाया । कबीर महात्मा थे और उनके द्वारा साहित्य में पूत भावनाओं का समावेश हुआ। किंतु कवीर की भाषा तो बहुत ही बिगड़ी हुई है। कुछ पंजाबी खड़ी बोली, कुछ ब्रजभापा और कुछ अवधी का पुट देकर जो खिचड़ी तैयार हुई वह रमते साधुत्रों के काम की भले ही हो, सर्वसाधारण विशेप- कर परिमार्जित रुचि रखनेवालों के लिये उसमें बडी कमी थी। सूफी कवियों ने अपने उदार भावों को पुष्ट भाषा में व्यक्त करके दोनों ही क्षेत्रों में अपनी सफलता का परिचय दिया। कधीर श्रादि संतों की यानी सामूहिक रूप से देश के लिये बड़ी हितकारिणी सिद्ध हुई, परंतु सूफियों की प्रबंध. रचनाओं ने सामाजिक हित भी किया और साहित्यिक समृद्धि में भा सहायता दी। यह ठोक है कि सूर और तुलसी आदि के प्रवेश करते हो प्रेममार्गी कवि बहुत कुछ स्थानांतरित हो गए और हिंदी भी अत्य धिक समृद्ध हुई पर इतना कहना ही पड़ेगा कि तुलसी को एक माजित भाषा देकर रामचरितमानस की रचना में सहायक होने में जायसा श्रादि सूफियों को श्रेय देना ही होगा। हिंद सभ्यता और संस्कृति के प्रति सहानुभूति इन मुसलमान कवियों की खास विशेषता है। इनका हृदय अतिशय उदार और स्वर्गीय प्रेम की पीर से श्रोतप्रोत था। सबसे बड़ी वस्तु इनका कवितागत रहस्यवाद है जो हिंदी में अपनी विशेषता रखता है। इन मुसलमान सूफी कवियों की देखा देखी हिंदू कवियों ने भी उपास्यान-काव्यों की रचना की। किंतु इन सब काव्यों का ढंग या तो पौराणिक, ऐतिहासिक ,अथवा पूर्णतया साहित्यिक हुआ। का कवियों की रचनाओं में धर्म की जो लहर अदृश्य रूप से व्याप्त हो रहा ह, उसका हिंदू कवियों की इन रचनात्रों में अभाव है। ऐसे काव्यो में लक्ष्मणसेन पद्मावती कथा, ढोलामारू री चउपद्दी, रसरतन काय कनकमंजरी, कामरूप की कथा, चंद्रकला, प्रेमपयोनिधि, हरिचंद पुराण श्रादि हैं। इनके संबंध में इतना कह देना श्रावश्यक है कि इन्ह उपाख्यानों की परंपरा के परिणामस्वरूप उन अमर काव्या का हिंदी में रचना हुई जिनके कारण हिंदी साहित्य गौरवान्वित श्रार सम्मानित हुआ।