पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२९९

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रामभक्ति शाखा २६४ अन्य उपास्य देव उनके सामने निम्न स्थान के अधिकारी हुए। कपीर ने तो राम को निर्गुण और सगुण ब्रह्म से भी परे पतलाकर उनका चरम उत्कर्ष प्रकट किया है। पर यह समानता केवल नाम की थी, व्यक्तित्व की नहीं। राम से उनका अभिप्राय परब्रह्म से ही था। स्वामी रामानंद यद्यपि प्राचार्य रामानुज के ही अनुयायी थे, पर मंत्र-भेद, तिलक-भेद तथा अन्य विभेदों के कारण कुछ लोग उन्हें श्री-वैष्णव संप्रदाय में नहीं मानते। वे निदंडी संन्यासी नहीं थे, अतएव उनमें और श्री-संप्रदाय में भेद बतलाया जाता है। परंतु यह निश्चित है कि रामानंद काशी के वावा राघवानंद के शिष्य थे श्रीर घाया राघवानंद श्री- संप्रदाय के वैष्णव संत थे। यद्यपि यह किंयदंती प्रसिद्ध है कि रामानंद और राघवानंद में प्राचार के संबंध में कुछ मतभेद हो जाने के कारण रामानंद ने अपना संप्रदाय अलग स्थापित किया फिर भी इसमें संदेह नहीं कि वाचा राघवानंद को मृत्यु के उपरांत रामानंदजी ने रामभक्ति का मार्ग प्रशस्त कर उत्तर भारत में एक नवीन भक्ति-मार्ग का श्रभ्युदय किया।। - यह तो हम पहले ही कह चुके हैं कि रामभक्ति का विकास दक्षिण भारत में रामानंद के पहले ही हो चुका था श्रीर तामिल प्रदेश में इसका प्रचार भी पर्याप्त था । उस समय तक भक्ति-नथों की रचना भी होने लगी थी। रामानंद ने दक्षिण के रामभक्तों से बहुत कुछ ग्रहण किया। "श्रो३म् रामाय नमः" का उनका मंत्र ही नहीं, उनकी धार्मिक उदारता भी, जो भक्ति में शूद्रों के प्रवेश श्रादि के रूप में व्यक्त हुई, उन्होंने दक्षिण के अनुकरण में ही स्वीकार की और चलाई थी। इतना ही नहीं, दक्षिण में प्रचलित अध्यात्म-रामायण, अगस्त्य-सुतीदण- संवाद श्रादि धर्मग्रंथों को लाकर उन्होंने उनका प्रचार किया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्तर भारत ने की तत्कालीन रामभक्ति के आंदोलन में दक्षिण भारत ने बहुत कुछ योग दिया था। ( रामानंद के संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कही जाती है कि उनके आंदोलन में बड़ी उदारता थी और चे ईसरोपासना में जातिभेद स्वीकार नहीं करते थे। उनके शिष्यों में शुद्र वर्ण के तो कई व्यक्ति थे, पर मुसलमान कबीरदास भी थे। उस समय स्त्रियों की स्थिति अत्यंत निम्न थी और वे भक्ति की अधिकारिणी नहीं .मानी जाती थी, परंतु स्वामी रामानंद की शिष्या स्त्री भी थी।) इस उदारता का कारण कुछ व्यक्ति मुसलमानों का प्रभाव बतलाते हैं, परंतु हमारी सम्मति में इसमें विदेशीय प्रभाव के साथ ही भारतीय तात्त्विक दृष्टि भी