पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३१

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हिंदी भाषा (१) हिंदी (पश्चिमी हिंदी अथवा केंद्रीय हिंदी-आर्य भांपा) की प्रधान पांच विभाषाएँ हैं-सड़ी बोली, वांगरू, ब्रजभाषा, कन्नौजी और सदी बोली बुंदेली। श्राज खड़ी वाली राष्ट्र की भापा है-साहित्य " और व्यवहार सब में उसी का बोलबाला है, इसी से वह अनेक नामों और रूपों में भी देख पड़ती है। प्रायः लोग व्रजभापा, श्रवधी आदि प्राचीन साहित्यिक भाषाओं से भेद दिखाने के लिये अाधु- निक साहित्यिक हिंदी को 'खड़ी बोली' कहते हैं। यह इसका सामान्य अर्थ है, पर इसका मूल अर्थ ले तो खड़ी वाली उस वोली को कहते है जो रामपुर रियासत, मुरादाबाद, विजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, देहरादून, श्रेयाला तथा फलसियां और पटियाला रिया- सत के पूर्वी भागों में वोली जाती है। इसमें यद्यपि फारसी-अरबी के शब्दों का व्यवहार अधिक होता है पर चे शब्द तद्भच अथवा अर्धतरसम होते हैं। इसके चोलनेवालों की संख्या लगभग ५३ लाख है। इसकी उत्पत्ति के चिपय में अब यह माना जाने लगा है कि इसका विकास शौरसेनी अपनंश से हुया है। उस पर कुछ पंजावी का भी प्रभाव देख पड़ता है। ____ यह सड़ी वोली ही श्राजकल की हिंदी, उर्दू और हिंदुस्तानी तीनों का मूलाधार है। खड़ी बोली अपने शुद्ध रूप में केवल एक उच्च हिंदी वोली है पर जब वह साहित्यिक रूप धारण करती है तथ कभी यह 'हिंदी' कही जाती है और कभी 'उर्दू। जिस भाषा में संस्कृत के तत्सम और अर्धतत्सम

  • यह एक विचित्र यात है कि जहाँ अन्य भापाएँ भिन्न भिन्न प्रदेशों

में बोली जाने के कारण उस उस प्रदेश के नाम से अभिहित होती हैं, जैसे अवधी, बज, बुदेलो, यहाँ सड़ी बोली का नाम सबसे भिन्न देख पड़ता है। इसका नाम- करण किसी प्रदेश के नाम पर, जहाँ इसका मुख्यतया प्रचार है या उद्भव हुआ है, नहीं है। हिंदी साहित्य में यह नाम पहले-पहल लल्लूजी लाल के लेस मे मिलता है। मुसलमानो ने जर इमे अपनापा तब इसे रेखता का नाम दिया । रेसता का अर्थ गिरता या पड़ता है। क्या इसी गिरी या पड़ी हुई भाषा के नाम का विरोध सूचित करने के लिये इसका नाम खड़ी बोली रसा गया? कुछ लोगों का कहना है कि यह 'सड़ी' शब्द 'परी (टक्साली) का गिड़ा रूप है। जो हो, इस नामकरण का कोई प्रामाणिक कारण अब तक नहीं ज्ञात हुआ है। क्या इसका नाम अतर्वेदी रपना अनुपयुक्त होता? पर अब सड़ी बोली नाम चल पड़ा है और उसे बदलने की चेष्टा व्यर्थ है।