पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३२१

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कृष्णभक्ति शाखा ३२३ में जन्मांध नहीं थे, क्योंकि भंगार तथा रंग रूपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मांध नहीं कर सकता। जान पड़ता है, कृएँ में गिरने के उपरांत उन्हें कृष्ण की कृपा से ज्ञानचक्षु मिले, पहले इस चक्षु से वे हीन थे। यही श्राशय उक्त कहानी से ग्रहण किया जा सकता है। जव महात्मा वल्लभाचार्य से सूरदासजी की भेंट हुई थी तब तक वे वैरागी के वेप में रहा करते थे। तय से ये उनके शिष्य हो गए और उनकी श्राशा से नित्य प्रति अपने उपास्य देव और सखा कृष्ण की स्तुति में नवीन भजन बनाने लगे। इनकी रचनानी का बृहत् संग्रह सूरसागर है जिसमें एक ही प्रसंग पर अनेक पदों का संकलन मिलता है। भक्ति के श्रावेश में वीणा के साथ गाते हुए जो सरस पद उन अंध कवि के मुस से निस्सृत हुए, उनमें प्रतिमा का नवनवोन्मेप भरा हुआ है। उनकी मर्म- स्पर्शिता और हृदयहारिता में किसी को कुछ भी संदेह नहीं हो सकता। सूरसागर के संबंध में कहा जाता है कि उसमें सवा लाख पदों का संग्रह है पर अव तक सूरसागर की जो प्रतियाँ मिली हैं उनमें छ: हजार से अधिक पद नहीं मिलते। परंतु यह संख्या भी बहुत बड़ी है। इतनी ही कविता उसके रचयिता को सरस्वती का वरद पुत्र सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है। इस ग्रंथ में श्रीमद्भागवत की संपूर्ण कथाओं का सन्निवेश किया गया है किंतु विशेषतः कृष्ण की बाललीला से लेकर उनके गोकुलत्याग और गोपिकात्रों के विरह तक की कथा फुटकर पदों में विस्तार के साथ कही गई है। ये पद मुक्तक के रूप में होते हुए भी एक भाव को पूर्णता तक पहुँचा देते हैं। सभी पद गेय है, अतः सूरसागर को हम गीत-काव्य कह सकते हैं। गीत-काव्य में जिस प्रकार छोटे छोटे रमणीय प्रसंगों को लेकर रचना की जाती है, प्रत्येक पद जिस प्रकार स्वतः पूर्ण तथा निरपेक्ष होता है, कवि के प्रांतरिक हृदयोद्गार होने के कारण उसमें जैसे कवि की अंतरात्मा झलकती देख पड़ती है, विवरणात्मक कथा-प्रसंगों का बहिष्कार कर तथा क्रोध आदि कठोर और कर्कश भावों का सन्निवेश न कर उसमें जैसे सरसता और मधुरता के साथ कोमलता रहती है, उसी प्रकार सूरसागर के गेय पदी में उपर्युक्त सभी बातें पाई जाती हैं। यद्यपि कृष्ण को पूरी जीवन-गाथा भी सूरसागर में मिलती है, पर उसमें कथा कहने की प्रवृत्ति बिलकुल नहीं देख पड़ती, केवल प्रेम, विरह आदि विभिन्न भावों की वेगपूर्ण व्यंजना उसमें बड़ी ही सुंदर वन पड़ी है। - सूरसागर के प्रारंभिक नवस्कंधों में चिनय के पद, सृष्टि-क्रम तथा चौबीस अवतारों का वर्णन, आर्यावर्त के नुपतियों का पौराणिक परिचय,