पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३२२

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३२४ हिंदी साहित्य भागवत पुराण की आध्यात्मिक व्यास्या श्रादि के विषय पाए हैं। इनमें मुस्ययः श्रीमद्भागवत का ही तथा कहीं कहीं कुछ अन्य पुराणों का अनुसरण किया गया है। दशम स्कंध में कृष्ण जन्म से कथा का श्रारंभ हुश्रा है। यशोदा के गृह में पहुंचकर कृपण धीरे धीरे बड़े होने लगे। उस काल की उनकी बाल लीलाओं का जितना विशद वर्णन सूरदास ने किया उतना हिंदी के अन्य किसी कवि ने नहीं किया। कृष्ण अमी कुछ ही महीनों के है, माँ का दूध पीते हैं, मां यह अभिलाषा करती है कि बालक कब बड़ा होगा, कर इसके दो नन्हें नन्हे दाँत जर्मगे, का यह माँ कहकर पुकारेगा, कव घुटनों के बल घर भर में रेंगता फिरेगा आदि आदि। माँ चालक को दूध पिलाती है, न पोने पर उसे चोटी बढ़ने का लालच दिखाती है। उसे आकाश के चंद्रमा के लिये रोते देस थाल में पानी भरकर चाँद को पालक के लिये भूमि पर ला देती है। कितना वात्सल्य स्नेह, कितना सूदम निरीक्षण और कितना वास्तविक वर्णन है। इस प्रकार के असंख्य सूक्ष्म भावों से युक्त अनेक रसपूर्ण पद कहे गए हैं। इन्हीं से उस युग की संस्कृति का निर्माण हुश्रा था, और इनमें उसका पूर्ण प्रतिबिंध भी मिलता है। कृष्ण कुछ बड़े होते है। मणि-खंभों, में अपना प्रतिबिंब देखकर प्रसन्न होते और मचलते हैं। घर की देहली नहीं लांघ पाते । कृपण और बड़े होते हैं, वे घर से बाहर जाते,गोप सखाओं के साथ खेलते-कूदते श्रार वालचापल्य प्रदर्शित करते हैं। उनके माखन- चोरी,नादि प्रसंगों में गोपिकानों के प्रेम की व्यंजना भरी पड़ी है। गोपियाँ थाहर से यशोदा के पास उपालंम श्रादि लाती हैं, पर हृदय से वे कृष्ण की लीलानों पर मुग्ध है। प्रेम का यह अंकुर यड़ी ही शुद्ध परिस्थिति में देख पड़ता है। रुष्ण की यह किशोरावस्था है, कलुष या वासना का नाम भी नहीं है। शुद्ध स्नेह है। आगे चलकर कृष्ण सारे ब्रजमंडल में सबके स्नेहभाजन बन जाते हैं। उनका गोचारण उन्हें मनुष्यों के परिमित क्षेत्र से ऊपर उठाकर पशुओं के जगत् तक पहुँचा देता है। चंशीवट और यमुनाकुजों की रमणीक स्थली में कृष्ण की जो सुंदर मृति गोप-गोपिकानों के साथ मुरली बजाते और स्नेहलीला करते अंकित की गई है, वैसी सुपमा का चित्रण करने का सौभाग्य संभवतः संसार के किसी अन्य कवि को नहीं मिला। ब्रज- मंडल की यह महिमा अपार है। कृष्ण का बजनिवास स्वर्ग को भी . ईर्ष्यालु करने की क्षमता रखता है। गोपिकानों का स्नेह बढ़ता है। चे कृष्ण के साथ रासलीला में सम्मिलित होती है, अनेक उत्सव मनाती है। प्रेममयी गोपिकाओं का