पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३२८

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३३० हिंदी साहित्य की रचना की है; पर उसमें कृष्ण में देवत्व की प्रतिष्ठा नहीं की गई, वे महापुरुप मान माने गए हैं। श्री मैथिलीशरण गुप्त ने मधुसूदन दत्त के "विरहिणी-व्रजांगना" काव्य का हिंदी में अनुवाद किया है। उसमें राधा के विरह को व्यंजना हुई है, पर पुराने भक्तों ने जितनी तन्मयता के साथ कृष्ण-भक्ति के उद्भार व्यक्त किए थे, इन दिनों उसका अल्पांश भी कठिनता से देख पड़ता है। अभी हाल में 'द्वापर' नामक उनका स्वतंत्र काव्य-ग्रंथ प्रकाशित हुआ है जिसमें श्रीकृष्ण संबंधिनी सुंदर चर्चा है। . कृष्णभक्ति-काव्य का चरम उत्कर्प सूरदास की रचनाओं में देख पड़ा। सूरदास अकबर के समकालीन थे। अकयर के शासनकाल में कृष्णभक्तिकाल की सभी कलाओं की अनेकमुखी उन्नति हुई थी। अन्य रचनाएँ - साहित्य और कविता पर सम्राट का पर्याप्त अनु- राग था। वे स्वयं व्रजभाषा की कविता करते थे। ऐसी अवस्था में उनके शासन-समय में साहित्य की उन्नति होना स्वाभाविक ही था। केवल कृष्णभक्ति की कविता की उन्नति ही उस काल में नहीं हुई थी; वरन् अनेक अन्य विषयों से संबंध रखनेवाली कविताओं का भी उस काल में विकास हुआ था। इस विकास को मुख्यतः दो श्रेणियों में रखा जा सकता है। एक तो यह जो अकबर के दरवार से संपर्कित होने के कारण उससे प्रत्यक्ष संबंध रखता है और दूसरा वह जो देश और साहित्य की सामान्य अवस्थाओं के आधार पर टुश्रा, अतः जिसमें अकबर का हाथ प्रत्यक्ष तो नहीं देख पड़ता, हाँ दूर से भले ही कुछ संबंध ठहरे। पहली श्रेणी श्रृंगार और नीति के फुट- कर रचनाकारों और कवियों की है और दूसरी में रीतिग्रंथ लिखनेवाले वे कवि श्राते हैं जो अधिकतर संस्कृत के पंडित और राजदरबारी थे। पहले वर्ग के प्रतिनिधि कवि रहीम, गंग और नरहरि श्रादि और दूसरे के महाकवि केशवदास थे। इनके अतिरिक्त सेनापति आदि इसी काल के कुछ अन्य कवि हुए, जिन्हें भी पहले वर्ग में ही रखा जा सकता है। इस अध्याय में कृष्णभक्ति की कविता के साथ साथ चलनेवाली उन कृतियों का उल्लेख भी हम करेंगे जिन्हें हमने उपर्युक पहले वर्ग में रखा है। दूसरे वर्ग के संबंध में हम अगले अध्याय में लिखेंगे क्योंकि वास्तव में उस वर्ग के कवियों का यह प्राविर्भाव-काल ही था, उसका विकास बहुत पीछे चलकर हुआ था। ये अकबर के दरवार के उच्च कर्मचारी होते हुए भी हिंदी कविता की श्रोर खिचे थे। नीति के सुंदर सुंदर दोहे इन्होंने बड़ी मार्मिकता से कहे। जीवन के सुख-वैभव का अच्छा अनुभव करने के कारण रहीम