पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३२९

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कृष्णभक्ति शाखा ३३६ की तत्संबंधी उक्तियों में तीव्र भावव्यंजना है। दोहों के अतिरिक्त इन्होंने वरवै, सोरठा, सवैया, कवित्त आदि अनेक छंदों तथा संस्कृत के ही वृत्तों में भी रचना की है। उनका घरदै छंदों में लिखा नायिकाभेद ठेठ अवधी के माधुर्य से समन्वित है। कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास तक ने इससे प्रभावित होकर इसी छंद में घरवै रामायण लिखी थी। गोस्वामीजी की ही भौति रहीम का अवधी और ब्रज भाषाओं पर समान अधिकार था और गो- स्वामीजी की रचनाओं की भांति इनकी रचनाएँ भी जनता में अत्यधिक प्रचलित हुई। गोस्वामीजी से इनकी भेंट हुई थी और दोनों में सौहार्द भाव भी था। ये बड़े ही उदारहृदय दानी थे और इनका अनुभव बड़ा ही विस्तृत, सूक्ष्म और व्यावहारिक था। ये दोनों ही अकवर के दरवार के श्रेष्ठ हिंदू कवि थे। गंग की शृंगार और वीर रस की जो रचनाएँ संग्रहों में मिली है, उनसे इनके भापा-अधिकार और वाग्वैदग्ध्य का पता चलता है। जनता में इनका बड़ा नाम है, परंतु इनकी रचित एक भी पुस्तक अब तक नहीं मिली। "तुलसी गंग दोऊ भए सुकविन के सरदार" की पंक्ति इन्हीं को लक्ष्य करके कही गई है। नरहरि चंदीजन अकबर के दरवार में सम्मानित हुए थे। ऐसा कहते है कि बादशाह ने इनका एक छप्पय सुनकर अपने राज्य में गोवध बंद कर दिया था। नीति पर इन्होंने अधिक छंद लिखे। अकवर के दरवारियों में वीरवल और टोडरमल भी कवि हो गए हैं। चीरवल अकबर के मंत्रियों में से थे और अपनी चाक्चातुरी तथा विनोद के र लिये प्रसिद्ध थे। इनके श्राश्रय में कवियों को अच्छा ' सम्मान मिला था और इन्होंने स्वयं ब्रजभापा में सरस और सानुप्रास रचना की थी। महाराज टोडरमल के नीति-संबंधी फुटकर छंद मिलते हैं जो कविता की दृष्टि से बहुत उच्च कोटि के नहीं है। इनके अतिरिक्त मनोहर, होलराय आदि कवि भी अकवरी दरवार में थे। स्वयं बादशाह अकबर की भी ब्रजभापा में कुछ रचनाएँ पाई जाती हैं। घ्रजभापा को इतना बड़ा राजसम्मान इनके पहले कभी नहीं मिला था। दरवार से संपर्कत कवियों में सेनापति का स्थान सर्वोच्च है। ये फान्यकुब्ज ब्राह्मण और अच्छे भक्त थे। पहले ये किसी दरवार में बन रहे हो, पर जीवन के पिछले अंश में तो ये संन्यासी हो गए थे। इन्होंने पटऋतुओं का वर्णन किया है जो बड़ा ही हृदयग्राही हुआ है। इन्हें प्रकृति की सूक्ष्म सूक्ष्म बातों का