पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३३२

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३३२ हिंदी साहित्य अनुभव भी था और इनका निरीक्षण भी विशेष मार्मिक था। पिछले समय की भक्ति श्रीर विराग की रचनाएँ चित्त पर स्थार डालती हैं। मापा ब्रज की ग्रामीण होते हुए भी अलंकृत है। फविच-रत्नाकर अब तक अप्रकाशित है। इसी फाल की रुतियों में नरोत्तमदास का "सुदामा-चरिः है, जो कविता की दृष्टि से अच्छा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अकयर और जहाँगीर के राजत्व में हिंदी कविता, क्या भापा और क्या भाव की दृष्टि से, विशेष प्रौढ गई। इस काल में थोड़ी सी रचना गद्य में भी हुई पर हिंदी में र तक गद्य के विकास का युग नहीं पाया था।