पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३३४

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३३४ ___ हिंदी साहित्य और प्रवाह है जो मानस को रससित कर देता है। यही कारण है कि “प्राकृत जन गुन गान" से विरत होकर उन सभी कवियों ने "त्वदीयं वस्तु गोविंद तुभ्यमेव समर्पये" के अनुसार अपनी प्रतिभा और कृति- शक्ति को परमेश्वर की भक्ति में लगाया। चे सांसारिक धन-संपत्ति को फुछ नहीं समझते थे। फवीर जुलाहे थे और जुलाहे का व्यवसाय भी करते थे। सूर और तुलसी संसार के त्यागी महापुरुष थे। अन्य महात्मा भी संसार में लिप्त न थे। कुछ ने अकवर-सदृश सम्राटों के निमंत्रण अस्वीकृत करके अपने महान् होने का परिचय दिया था। इन्हीं में अद्वितीय भावुक और सहदय रसखान थे जिन्होंने "कोटिन चे फलधात के धाम करील के कुंजन ऊपर चारों" को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था। इसी प्रकार के न जाने कितने महात्मानों के प्रसाद से हिंदी साहित्य की श्री-वृद्धि हुई थी और न जाने कितने सच्चे रसिकों की भक्ति काव्य-कला के सांचे में ढलकर समस्त उत्तर भारत का हृदय श्राप्लावित कर चुकी थी। कवीर श्रादि संतो ने हिंदू और मुसलमानों की भेदबुद्धि को दूर करके सरल सदाचार-पूर्ण जीवन व्यतीत करने का उपदेश दिया, जायसी आदि लौकिक प्रेम को स्वर्गीय बनाने के प्रयासी हुप, सूर आदि ने मधुर भावों से भावित कृष्ण-काव्य की रचना कर असंख्य हृदयों को हरा किया और तुलसी ने भारत की संस्कृति को बड़े ही व्यापक, मधुर और उदार भाव से अंकित कर हिंदू जाति का प्रतिनिधित्व प्राप्त किया। पर क्या उन्हें अपनी अपनी कृतियों का कुछ भी गर्व था ? गर्व तो दूर रहा, वे कभी अपने वास्तविक महत्त्व की कल्पना भी न कर सके। उन महाकवियों ने अपने को भूलकर किसी अन्य की प्रेरणा से कविता की थी। निश्चय ही वह प्रेरणा स्वर्गीय थी। जायसी ने पद्मावत में अपने को पंडितों का "पछिलगा" बतलाया है और तुलसीदास ने कहा है, "कवित विवेक एक नहि मोरे, सत्य कहाँ लिखि कागद फोरे।" इसी प्रकार सभी विनीत भक्तों ने अपनी योग्यता की विज्ञप्ति की है। यह सब उस समय की बात है जव पंडितराज की उपाधि धारण करनेवाले संस्कृत के उद्भट कवि जगन्नाथ अपनी ही स्तुति में बहुत कुछ कह गए थे। हिंदी के उस विकास-काल की यह मनोवृत्ति ध्यान देने योग्य है। यदि हम कहें तो कह सकते हैं कि हिंदी साहित्य की तत्कालीन अट्टालिका इन विनीत नीर निरपेक्ष महात्माओं द्वारा रचित दृढ़ नीव पर ही खड़ी हुई थी! जिस काल में ऐसे बड़े बड़े महात्माओं ने कवि-कर्म स्वीकार करके तल्लीनता की अवस्था में हृदय की रागिनियों का अमृतची पालाप