पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३३९

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रीति काल ३३६ भर के साहित्य को कसकर परख सके और उसके उत्कर्षापकर्प का निर्णय कर सकें। स्थायी साहित्य जीवन की चिरंतन समस्याओं का समा- धान है। मनुष्यमात्र की मनोवृत्तियों, उनकी श्राशाओं, श्राकांक्षाओं श्रीर उनके भावों, विचारों का यह अक्षय भांडार है। मनुष्य-जीवन एकमुख नहीं, सर्वतोमुस है उसके अनेक विभाग और अनेक प्रकार हैं। वह इतना श्रय और गहन है कि उसके रहस्यों को समझ सकना सरल काम नहीं। साहित्य हमारे सामने जीवन को इन्हीं विविध, अक्षय एवं गहन समस्याओं का चित्र रखता है, अतः वह भी बहुत कुछ वैसा ही है। उसमें एक ओर तो मानव-समाज के उयातिउच्च लक्ष्यों और आकांक्षाओं की झलक रहती है और दूसरी ओर उसकी वास्त- विक परिस्थितियों, उसके सुख-दुःख और उत्थान-पतन का चित्र रहता है। कौन कह सकता है कि परिस्थितियाँ कितनी है ? उसी प्रकार लक्ष्यों, उद्देशों, श्राकांक्षाओं और श्रादर्शी की भी फ्या गणना है ? सब मिलकर साहित्य जीवन की असीमता का प्रतिविंय बन जाता है। उसमें असंख्य श्रादर्शों के साथ अपार वस्तुस्थिति मिलकर उसे निस्सीम बना देती है। साधारण से साधारण से लेकर महान् से महान् भावनाओं के लिये उसमें स्थान है, उसकी सीमा में सब कुछ पा सकता और समा सकता है। जिस जाति का साहित्य जितना अधिक विस्तृत और पूर्ण होगा, उसमें उतने ही विस्तृत और पूर्ण जीवन के विकास की संभावना रहेगी। साहित्य की इस व्यापक भावना को हम समन्वयवाद कह सकते है। . इस साहित्यिक समन्वय में रीति काल के भंगारी कवियों का अलग स्थान है, यह पहले ही स्वीकार करना पड़ेगा। उन कवियों का लक्ष्य भक्त कवियों की भाँति फुछ विशिष्ट उच्च आदर्शों पर नहीं था, परंतु गार्हस्थ्य जीवन के सुख सौंदर्य श्रादि पर उनकी दृष्टि टिकी थी और स्त्री-पुरुष के मधुर संबंध की श्रोर उनका ध्यान खिंचा था। यह ठीक है कि गार्हस्थ्य-जीवन का जो रूप उन्होंने देखा, वह न तो संपूर्ण था श्रार न उत्कृष्ट ही, और यह भी ठीक है कि स्त्री-पुरुष के संबंध की मधु- रता का उन्हें सम्यक् परिचय नहीं था, तथापि फुटकर पदों में ही खंड- चित्रों को अंकित करके और प्रेम तथा सौंदर्य की अभिव्यक्ति की यथा- शक्ति चेष्टा करके उन्होंने जीवन के पारिवारिक पक्ष पर अच्छा प्रकाश डाला। इस दृष्टि से उनका काव्य-क्षेत्र सीमित अवश्य था, पर उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। वे सौंदर्य-प्रेमी कवि थे, यद्यपि रीतियों में जकड़े रहने के कारण उनका सौंदर्य प्रेम प्रांजल और पवित्र नहीं हो