पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३४६

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S ३४६ हिंदी साहित्य इस संबंध में रीति-संप्रदायवालों के अवश्य अधिक उचित तथा उन्नत विचार हैं। चे गणों को काव्य की श्रात्मा मानते थे यद्यपि गुणों का तर ये वास्तविक रूप में नहीं समझ सके थे। वास्तव में गुण तो रससिद्धि के साधन हैं। यह बात पीछे से ध्वनि-संप्रदायवालों ने समझी। विभिन्न रस के उपयुक्त गुणों का वर्गीकरण और निर्धारण भी रीति-संप्रदाय के प्राचार्यों ने किया था। इसी काल के लगभग वक्रोक्ति-संप्रदाय नामक एक नवीन समीक्षा- शैली की उत्पत्ति हुई जो बहुत कुछ अलंकार-संप्रदाय के अनुकरण पर थी। वक्रोक्ति मोटार उस हम अलंकार-संप्रदाय के अंतर्गत ही मानना पादाय उचित समझते हैं। वमोक्ति को रुद्रट फेवल शब्दालंकारमान मानते हैं और उसके काकु और श्लेप नामक दो विभाग करते हैं। मम्मट आदि भी उन्हीं का अनुकरण करते हैं पर रुय्यक पक्रोक्ति को अर्थालंकार बतलाते हैं। केवल वक्रोक्ति जीवितकार कुंतल ने वक्रोक्ति को काव्य का सर्वस्व माना है। उनको सम्मति में वक्रोक्तिरहित साधारण कथन काव्य नहीं है। कवि वस्तुओं के संबंध का अभि- व्य जन जो फुछ चमत्कार और बाँकेपन के साथ करता है वही वक्रोक्ति है। कुंतल ने ध्वनि आदि काव्य के समस्त उपादानों को चक्रोक्ति में ही खपा दिया है। कहा जा सकता है कि वक्रोक्ति को काव्य की प्रात्मा • ठहराना यक्रोक्ति-जीवितकार का वैसा ही श्राग्रह है जैसा अलंकार- . संप्रदायवाली का अलंकार को काव्य का प्रधान स्वरूपाधायक बतलाना। पंचम मुख्य संप्रदाय ध्वन्यालोककार का है। वास्तव में यह रस-संप्रदाय का ही एक व्यावहारिक रूप है जो अलंकारों, रीतियों, गुणों श्रादि को उनके उचित स्थान पर नियुक्त करता ध्वनि-संप्रदाय समदाय है। इस प्रणाली का प्रयोग विशेषकर नाटकों के उपयुक्त है। क्योंकि रस-निष्पत्ति के लिये जिस लंबे प्रबंध की आवश्यकता होती है वह मुक्तक काव्य में नहीं मिल सकता। इस प्रकार फुटकर पदों में रसात्मकता की प्रतिष्ठा करने के लिये रस-संप्रदाय किसी पथ का निर्देश नहीं करता। ध्वनि-संप्रदाय के श्राविर्भाव का एक उद्देश यह भी था। ध्वन्यालोक के अनुसार सत्काव्य में चमत्कारपूर्ण व्यंग्यार्थ होता है। धनि तीन प्रकार की होती है-रसध्वनि, अलंकार- ध्वनि और वस्तुध्वनि। रसध्वनि में नौ रस ही नहीं, सभी भाव और भावाभास आदि भी आ जाते हैं। वस्तुध्वनि द्वारा कोई वस्तु व्यंग्य होती है। अलंकारध्वनि भी वास्तव में वस्तुध्वनि है, केवल यह वस्तु अलंकार के रूप में होती है। ध्वनिकार स्पष्ट शब्दों में यह कह