पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३४७

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रीति काल देता है कि जिस फाव्य से रससिद्धि नहीं होती वह निष्प्रयोजन है। इस प्रकार यह रस-संप्रदाय से अपना घनिष्ठ संबंध यतलाता है। साथ ही वह अलंकारों, गुणों श्रादि को रसोत्पादन में सहायक मात्र मानकर उनके गौण स्थान को स्पष्ट करता है। श्रय ध्वनि-संप्रदाय कान्य- समीक्षा की सर्वमान्य शैली हो गई है; पर हम पहले इसे अपनी स्थिति निर्धारित करने में प्रतिहारेदुराज, कुतल तथा महिमभट्ट श्रादि अनेक विद्वानों के कठिन विरोध का सामना करना पड़ा था। हिंदी में जिस समय रीति ग्रंथों का निर्माण प्रारंभ हुया था, उस • समय संस्टात के ये सभी संप्रदाय बन चुके थे और साहित्य के विद्या- हिंदी में रीति क र्थियों के सामने थे । वास्तव में अलंकार-शास्त्रियों त ने काव्य संबंधी समीक्षा को अपने अपने सिद्धांतों के अनुसार वैज्ञानिक भित्ति पर खड़ा किया था, उसमें नवीन उद्भावना या भ्रमसंशोधन के लिये जगह नहीं थी। केवल रुचिविभेद के अनुसार साहित्यसेवियों को अपना अपना मार्ग ग्रहण करना और उस पर चलना था। मार्ग स्थापन का कार्य पहले ही हो चुका था। हिंदी में जो रीति-ग्रंथ लिखे गए, उनमें से अधिकांश में संस्कृत रीति-अंधों की नकल की गई। अधिकांश अलंकार-शास्त्रियों ने रस और ध्वनि संप्रदायों का अनुसरण किया, पर श्राचार्य केशवदास अलंकार- संप्रदाय के अनुयायी थे। रसों में भंगार रस को ही प्रधानता मिली। यह तत्कालीन परिस्थिति का परिणाम था। मंगार के श्रालंबन नायक-नायिका हुए जिनके अनेक भेद-विभेद किए गए। उद्दीपन के लिये पड़ऋतु-वर्णन यादि की प्रथा चली। अतिशयोक्ति का श्राश्रय भी बहुत अधिक लिया जाने लगा। हिंदी के रीतिकारों की ये प्रधान विशेषताएँ हैं। परंतु इस काल के रीतिकारों में अनेक लोग सन्या कवि- हृदय रखते थे, अतः उनके उद्गारों में हादिक अनुभूति की मर्मस्पर्शिता मिलती है जो केवल रीति की लीक पीटनेवालों में नही मिल सकती। ऐसे कवियों की सौंदर्य-सृष्टि विशेष प्रशंसनीय हुई है। हिंदी की प्राचार्य-परंपरा जव से रोति की ओर झुको तव से कविता बहुत कुछ रीति-सापेक्ष हो गई और उसके समझने-समझानेवाले भी रीति-नथों में विशेपज्ञ होने लगे। कविता की उचमता की कसौटी बदल गई। जिसमें अलंकारों का समावेश न हो वह कविता ही न रही। आचार्य केशवदास की रामचंद्रचंद्रिका इसी फेर में पड़कर फुटकर छंदों का संग्रह हो गई, जिसमें कहीं रामचंद्र अपनी माता कौशल्या को धैधव्य संबंधी उपदेश देते हैं, कहीं पंचवटी की तुलना धूर्जटि से करते