पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३५

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हिंदी भाषा बलिष्ठ और कठोर किसानों की कठोरता और सादगी मिलती है। प्रिय. र्सन ने लिखा है कि पजावी ही एक ऐसी श्राधुनिक हिंदी--प्रार्य भाषा है जिसमें वैदिक अथवा तिव्वत चीनी भाषा के समान सर पाए जाते हैं। पजाबी के दक्षिण में राजस्थानी है। जिस प्रकार हिंदी का उत्तर- पश्चिम की ओर फैला हुश्रा रुप पजावी है, उसी प्रकार हिंदी का दक्षिण राजस्थानी और गुजराती पश्चिम विस्तार राजस्थानी है। इसी विस्तार का अंतिम भाग गुजराती है। राजस्थानी और गुज. राती वास्तव में इतनी परस्पर संबद्ध है कि दोनों को एक ही भाषा की दो विभाषाएँ मानना भी अनुचित न होगा। पर अाजकल ये दो स्वतंत्र भापाप मानी जाती है। दोनों में स्वतंत्र साहित्य की भी रचना हो रही है। राजस्थानी की मेवाती, मालची,मारवाडी और जयपुरी आदि अनेक विमापाएँ हैं, पर गुजराती में कोई निश्चित विभापाएँ नहीं है। उत्तर और दक्षिण की गुजराती की बोली में थोडा स्थानीय भेद पाया जाता है। मारवाडी ओर जयपुरी से मिलती-जुलती पहाडी भापाएँ हिंदी के उत्तर में मिलती हैं। पूर्वी पहाडी नेपाल की प्रधान भाषा है इसी से वह नेपाली भी कही जाती है। इसे ही परवतिया _ अथवा खसकुरा भी कहते हैं। यह नागरी अक्षरों में लिखी जाती है। इसका साहित्य सर्वथा आधुनिक है। केंद्रवर्ती पहाडी गढवाल रियासत तथा कुमाऊँ और गढवाल जिलों में बोली जाती है। इसमें दो विमापाएँ है-कुमाउनी और गढवाली। इस भाषा में भी कुछ पुस्तके, थोड़े दिन हुए, लिपी गई है। यह भी नागरी अक्षरों में लिखी जाती है। पश्चिमी पहाडी बहुत सी पहाडी घोलियों के समूह का नाम है। उसकी कोई प्रधान विमापा नहीं है और न उसमें कोई उरलेखनीय साहित्य ही है। कुछ ग्राम गीत भर मिलते हैं। इसका क्षेत्र बहुत विस्तृत है। संयुक्तप्रांत के जोनसार-यावर से लेकर पजाय प्रांत में सिरमोर रियासत, शिमला पहाडी, कुड , मंडी, चंवा होते हुए पश्चिम में कश्मीर की मदरचार जागीर तक पश्चिमी पहाडी बोलियाँ फैली हुई है। इसमें जौनसारी, कुडली, चंबाली आदि अनेक विमाषाएँ हैं। ये टकरी अथवा तफरी लिपि में लिखी जाती हैं। इसे हिंदी का पूर्वी विस्तार कह सकते हैं पर इस भाषा में इतने पहिरंग भापानों के लक्षण मिलते हैं कि इसे अर्ध विहारी भी कहा जा

  • अर्धमागधी का ही अनुवाद अर्घ बिहारी है। पूर्वी हिंदी प्राचीन

पाल की अर्धमागधी प्राकृत के क्षत्र में ही वोली भी जाती है। ध्यान देने की यात