पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३५०

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३५० हिंदी साहित्य ने इन्हें पुरस्कृत करके इनकी योग्यता तथा अपनी गुणग्राहिता का परिचय दिया था। इनके दूसरे भाई भूषण के संबंध में हम अन्यत्र लिख चुके हैं। हिंदी के रससिद्ध सच्चे कवियों में मतिराम अपनी कविता के फारण प्रसिद्ध है। हिंदी साहित्य के इतिहासकार मिश्रयंधुयों ने इन्हें . मतिराम हिंदी नवरत में स्थान दिया है और वास्तव में ये - उस स्थान के अधिकारी भी है। इनकी रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषताइनका भाषा-सौष्ठव है। मतिराम की सी प्रसाद- गुण-संपन्न सरल कोमल ब्रजभाषा बहुत कम फवियों ने लिखी होगी। इनकी पुस्तकों में रसराज और ललितललाम विशेष प्रसिद्ध है। इनके अतिरिक्त छंदसार, साहित्यसार और लक्षण-भंगार नामक इनकी अन्य कृतियां भी हैं। इनका बनाया, मतिराम सत्तसई नामक भंगार- रस-विशिष्ट सात सौ दोहों का संग्रह भी कुछ समय पहले मिला है। यद्यपि इनकी सतसई में बिहारी-सतसई की सी अलंकारयोजना नहीं है और यद्यपि उसकी प्रसिद्धि भी अधिक नहीं है, पर भापा तथा भावों के सुंदर स्वाभाविक प्रवाह की दृष्टि से वह बिहारी-सतसई से कम नहीं है। विहारी ने पेचीले मजमून याँधकर और अतिशयोक्ति आदि हलके अलंकारों से लादकर कविता-कामिनी की निसर्गसिद्ध श्री बहुत कुछ कम कर दी है। उसके अनुरागी चाहे उन अलंकारों पर ही मुग्ध चने रहें, पर जहां हार्दिक अनुभूतियों के खोजी रसिक समीक्षा करेंगे, वहाँ विहारी के अनेक दोहों को निम्न स्थान ही मिल सकेगा। मतिराम में भावपक्ष का बहुत सुंदर विकास देख पड़ता है। ___उनका रसराज और ललितललाम रीति कविता के विद्यार्थियों के लिये सरलतम और सर्वोपयुक्त ग्रंथ हैं। मतिराम को बूंदी के महाराज भावसिंह के यहाँ नाश्रय मिला था अतः उनकी स्तुति में इन्होंने अनेक छंद कहे हैं, जिनमें कुल धीर रस के हैं। रीति काल के कवियों में प्रसिद्धि की दृष्टि से विहारी अन्यतम है। कुछ साहित्य-समीक्षक कवियों के उत्कर्षापकर्ष का निर्णय उनकी मदारी कृतियों की प्रसिद्धि तथा प्रचार की दृष्टि से करते है। पर ऐसा करने में भ्रांति की संभावना रहती है। जनता का रुचिनिर्माण करने में क्षणिक परिस्थितियाँ बहुत कुछ काम करती हैं, और उसकी साहित्यसमीक्षा संबंधी कसौटी कभी कभी विल- कुल अनुचित और अशुद्ध भी होती है। प्रसिद्धि तो बहुत कुछ संयोग से भी मिल सकती है। यह सय कहने का हमारा आशय यह