पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३५४

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३५४ हिंदी साहित्य सुनी सुनाई जाती है। पद्माकर की कृतियों में यदि थोड़ा अश्लीलत्व है तो उनके अनुकरणकारियों में उसका दसगुना। पद्माकर की अनुमासप्रियता भी बहुत प्रसिद्ध है। जहाँ अनु- मासों की ओर अधिक ध्यान दिया जायगा यहाँ भार्यो का नैसर्गिक प्रवाह अवश्य भंग होगा और मापा में अवश्य तोड़-मरोड़ करनी पड़ेगी। संतोप की यात इतनी ही है कि उनके छंदों में उनकी भावधारा को सरल स्वच्छंद मवाह मिला है, जिनमें हावों की मुंदर योजना के बीच में सुंदर चित्र खड़े किए गए है। टंगार की ओर अतिशयता से प्रवृत्त रहने के कारण इनका रामरसायन नामक वाल्मीकि रामायण का अनुवाद-ग्रंथ अच्छा नहीं बन पड़ा। वह युग प्रबंधकाव्य की पड़ती का था। मुक्तक रचनाओं में पद्माकर ने अच्छा चमत्कार प्रदर्शित किया है। आधुनिक हिंदी के कुछ कवियों तथा समीक्षकों की दृष्टि में पद्माफर रीति काल के सर्वोत्कृष्ट कवि ठहरते हैं! जगद्विनोद और पनाभरण रीति का अध्य- यन करनेवालों के लिये सरल ग्रंथ हैं। इनकी भाषा का प्रवाह बड़ा ही सुंदर और चमत्कारयुक्त है। चरखारी के महाराज विक्रमसाहि के श्राश्रय में अनेक सुंदर ग्रंथों की रचना करनेवाले प्रतापसाहि हिंदी के रीति काल के अंतिम प्रताप श्राचार्य और कवि हुए। इनके "व्यंग्यार्थ-कौमुदी", "काव्य-विलास" श्रादि ग्रंथों से इनके पांडित्य तथा फवित्व दोनों का पता चलता है। ब्रज की शुद्ध भाषा पर इनका अच्छा अधिकार था। ये पद्माकर की भांति अनुप्रासप्रिय नहीं थे। व्यंग्यार्थ-कौमुदी में रीति-परंपरा की अत्यंत प्रौढ़ अवस्था के अनुरूप अनेक रूढ़िगत रचनाएँ हैं, फिर भी शुद्ध काव्य की दृष्टि से भी उसमें उत्कृष्ट स्थलों की कमी नहीं है। प्राचार्यत्व और काव्यत्व का ऐसा सुंदर संयोग बहुत थोड़े कवियों में देख पड़ता है। समस्यापूर्ति करने के अभ्यासी कवियों का सा भावशैथिल्य प्रतापसाहि में बहुत कम पाया जाता है, जिससे उनके सच्चे कवि हृद्य का पता चलता है। रीति-काल की .कविता में प्रतापसाहि के उपरांत कोई बड़ा कवि नहीं हुआ, हाँ शृंगार- रस के फुटकर पद्यों की रचना द्विजदेव आदि कुछ कवियों ने उनके याद भी सफलतापूर्वक की। रीति को परिपाटी के बाहर प्रेम-संबंधी सुंदर मुक्तक छंदों की घनानद, योधा, ठाकुर रचना करनेवालों में इन तीन कविये स्थान है। रीति के भीतर रहकर बधे बँधाए विमाव, अनुभाव और संचारियों के संयोग से, और परंपरा-प्रचलित