पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३५९

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श्राधुनिक काल ३५६ हिंदी की हासकारिणी शृंगारिक कविता के प्रतिकूल प्रांदोलन का श्रीगणेश उस दिन से समझा जाना चाहिए जिस दिन भारतेंदु हरि- .. श्चंद्र ने अपने "भारत-दुर्दशा" नाटक के प्रारंभ में भारतदु हरिश्चद्र समस्त देशवासियों को संबोधित करके देश की गिरी हुई अवस्था पर उन्हें प्राँसू बहाने को आमंत्रित किया था। इस देश के और यहाँ के साहित्य के इतिहास में वह दिन किसी अन्य महा- पुरुप के जयंती-दिवस से किसी प्रकार कम महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकता। उस दिन शताब्दियों से सोते हुए साहित्य ने जागने का उपक्रम किया था, उस दिन रूढ़ियों की अनिष्टकर परंपरा के विरुद्ध प्रवल क्रांति की घोषणा हुई थी, उस दिन छिन्न भिन्न देश को एक सूत्र में पाँधने की शुभ भावना का उदय हुआ था, उस दिन देश और जाति के प्राण एक सत्कवि ने सच्चे जातीय जीवन की झलक दिखाई थी और उसी दिन संकीर्ण प्रांतीय मनोवृत्तियों का अंत करने के लिये स्वयं सरस्वती ने राष्ट्रभाषा के प्रतिनिधि फवि के फंठ में बैठकर एक राष्ट्रीय भावना उच्छ्वसित की थी। मुक्तकेशिनी, शुभ्रवसना, परवशा भारत-माता की फरणोज्वल छवि देश ने और देश के साहित्य ने उसी दिन देखी थी और उसी दिन सुनी थी टूटी-फूटी गारिक घीणा के बदले एक गंभीर झंकार, जिसे सुनते ही एक नवीन जीवन के उल्लास में वह नाच उठा था। वह दिवस निश्चय ही परम मंगलमय था, क्योंकि श्राज भी उसका स्मरण कर हम अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं। यदि सच पूछा जाय तो उसी दिन से साहित्य में एक नवीन चेतना हुई और उसी दिन से उसके दिन फिरे। अाज हम जिस साहित्यिक प्रगति पर गर्व करते हैं, उसका वीजारोपण इसी शुभ दिवस में हुआ था। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि के उद्योग से सामाजिक, सांप्रदायिक, राजनीतिक तथा साहित्यिक क्षेत्रों में जो हलचल मची, उसके परिणाम स्वरूप सबसे अधिक महत्त्व- पूर्ण बात हुई जनता में शिक्षा की अभिरुचि । संस्कृत तथा उर्दू-फारसी की ओर प्रवृत्त करनेवाली प्रेरणा स्वामी दयानंद से अधिक मिली और हिंदी अँगरेजी की पढ़ाई तो कुछ पहले से ही प्रारंभ हो चुकी थी। पड़ोस में होने के कारण उन्नतिशील बँगला भापा की ओर भी कुछ लोगों का ध्यान लगभग उसी समय से खिंचा। इस प्रयल शिक्षाप्रचार का जो प्रभाव राजनीतिक अभिज्ञता, सामाजिक जागर्ति और धार्मिक चेतना आदि के रूप में पड़ा, यह तो पड़ा ही, हिंदी साहित्य-क्षत्र भी उसके शुभ परिणाम स्वरूप अनंत उर्वर हो गया। सारा साहित्य नवीन