पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३६३

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श्राधुनिक काल की प्रवृत्ति खड़ी बोली की ओर अधिक हो रही थी, इसमें संदेह नहीं। छंदों में भी अनेकरूपता आने लगी थी। नए नए छंदों का इस काल में श्रच्या श्राविकार हुआ। परंतु इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण बात है व्याकरण की प्रतिष्ठा। भारतेंदु हरिश्चंद्र के समसामयिक कवियों को जो मार्ग प्रशस्त करना था, उसमें व्याकरण के जटिल नियमों को स्थान नहीं दिया जा सकता था। हिंदी के उस क्रांति-युग में व्याकरण की व्यवस्था संभव भी नहीं थी। उस समय तो कविता को रीति की संकीर्णता से निकालना था, उसे खुली हवा में लाकर स्वस्थ करना था, पर कुछ काल के उपरांत जव हिंदी गद्य कुछ उन्नत हुश्रा, तप भाषा- संस्कार आदि की ओर भी ध्यान दिया गया। यह सब होते हुए भी हमको इतना तो अवश्य स्वीकृत करना पड़ेगा कि उस काल की खड़ी वोली बड़ी कर्फशता लेकर आई थी, उसमें काव्योपयुक्त कोमलता नहीं थी। परंतु कर्कशता में कोमलता का समावेश करने और व्याकरण के नियमों से भापा को भंसलित करने की चेष्टा उस काल में अवश्य हुई थी। स्वर्गीय पंडित श्रीधर पाठक और पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी खड़ी बोली की कविता के प्रथम लेखक और प्राचार्य हुए। पाठकजी पारदीजी ने गोल्डस्मिथ की कवितापुस्तकों का अनुवाद " "ऊजड़ गाँव", "एकांतवासी योगी" और "श्रांत पथिक" के नाम से किया और कुछ मौलिक कविताएँ भी की। द्विवेदी जी ने मराठी साहित्य की प्रगति से परिचित होकर हिंदी की सर्वश्रेष्ठ मासिक पत्रिका सरस्वती में छोटी छोटी रचनाएँ की और अनेक कवियों को प्रोत्साहन दिया। यदि पाठकजी में कवित्व द्विवेदीजी से अधिक है तो द्विवेदीजी में भापा का मार्जन पाठकजी की अपेक्षा अधिक है। उस समय खड़ी बोली का जो निश्चित रूप प्रचलित था उसे सुधारकर काव्योपयुक्त बनाने की चेष्टा करने के कारण द्विवेदीजी का स्थान अधिक महत्वपूर्ण समझा जायगा। परंतु मराठी कविता की कर्कशता द्विवेदीजी की रचनाओं में भी देख पड़ी। कुछ काल उपरांत द्विवेदीजी ने कुमारसंभव प्रादि संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद कविता में किए, जो अपने ढंग के अनुपम हुए। पाठकजी ने व्रजमापा का पल्ला भी पकड़ा और बड़ी ही मधुर कविता का सृजन किया। द्विवेदीजी के अनुयायियों में आगे चलकर अनेक प्रसिद्ध कवि हुए, जिनमें वाबू मैथिलीशरण गुप्त सबसे अधिक यशस्वी हैं। पाठकजी को प्रकृति की रम्य क्रीडाभूमि काश्मीर में तथा अन्य मनोहर पहाड़ी प्रदेशों में रहने का सुअवसर मिला था, जिसके फल-स्वरूप उनके रसिक हदय ने