पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३६६

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हिंदी साहित्य नहीं कि उनका अधिकांश काव्य पद्यमय गद्य है। इन्होंने बँगला के प्रसिद्ध कवि माइकल मधुसूदन दत्त के "मेघनादवध", "वीरांगना", "विरहिणी प्रजांगना" तथा नवीनचंद्र सेन के "पलासीर युद्ध" का भी हिंदी में अनुवाद किया है। इन अनुवादों में गुप्तजी को अदभुत सफलता मिली है। इनसे उनकी विलक्षण क्षमता का पता तो चलता ही है, खड़ी बोली की शब्द-शक्ति भी प्रकट होती है। पंडित गयाप्रसाद शुक्ल सनेही और लाला मगवानदीन उर्द-मिली भाषा में कविता करते हैं। दोनों ही राष्ट्रीयता के भाव को लेकर श्राए है और दोनों की रचनाएँ श्रेजस्विनी हुई हैं। सनेहीजी और दीनजी अंतर इतना ही है कि सनेहीजी ने श्राधुनिक समाज को अपनी कविता का लक्ष्य बनाया और दोनजी महाराणा प्रताप, शिवाजी नादि वीर नृपतियों की प्रशन्तियाँ तिखने में लगे रहे। राष्ट्रीय कवियों को साहित्य की क्लिष्ट भापा लेकर नहीं चलना पड़ता, उन्हें तो जनता फी प्रचलित भापा का श्राश्रय लेना पड़ता है। इस दृष्टि से सनेहीजी पीर दीनजी दोनों ने ही भाषा का उपयुक्त चुनाव किया है। राष्ट्रीय कवियों को पूरी सफलता तभी मिल सकती है जव चे राष्ट्रीय यांदोलन में स्वयं सम्मिलित हों और उत्साहपूर्वक जनता को मुकि का पथ दिखलावें। चंद, भूपण श्रादि वीर कवियों ने ऐसा ही किया था। हिंदी के अाधुनिक राष्ट्रीय कचियों में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और पंडित बालकृष्ण शर्मा का कार्य इस दृष्टि से प्रशंसनीय कहा जायगा। सनेहीजी को कुछ रंगारिक रचनाएँ अच्छी नहीं हुई हैं, पर ये उनकी प्रारंभिक कृतियाँ हैं। पंडित रामचंद्र शुक्ल की प्रसिद्धि उत्कष्ट गद्यलेखक और समा. लोचक की दृष्टि से है, उनकी कविताएँ उन्हें अधिक सम्मानित नहीं कर म सकी है । वुद्धचरित के अतिरिक्त उनकी अन्य - रचनाएँ इधर-उधर बिखरी पड़ी है, संगृहीत नहीं हुई हैं। शुक्लजी हिंदी के विद्वान् और दार्शनिक आलोचक है, परंतु उनको सहृदयता भी विशेष उल्लेखनीय है। वन्य प्रकृति के उजाड़ और सूने स्वरूप के प्रति भी उनका जितना अनुराग है उतना वागीचों में खिले हुए गुलाब के फूल के प्रति नहीं। सौंदर्य को बड़े ही व्यापक रूप में देखने की अंतएि हिंदी में शुक्लजी को मिली है। उनके प्राकृतिक वर्णन वुद्धचरित के सर्वश्रेष्ठ ग्रंश हैं। उनसे उनका सूक्षा निरीक्षण प्रतिभासित होता है। "हृदय के मधुर भार" शीर्पक उनके फुटकर पद्यों में कहीं व्यंग्य और कहीं भीठी चुटकियों के द्वारा