पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३६७

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३६७ आधुनिक काल मानव-समाज की अश्ता, दुर्वलता और अहंकारिता का नग्न रूप दिखाया गया है। पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने हिंदी में "मिलन", "पर्थिक" तथा "स्वप्न" नामक तीन खंड-काव्यों की रचना की है। उनकी भापा में त्रिपाठीजी व संस्कृत का सौदर्य दर्शनीय है। यद्यपि उनमें भायों की प्रचुरता नहीं है, पर एक ही वस्तु को बड़ी सुंदरता से कई बार दिखाने में उन्हें बड़ी सफलता मिली है। राष्ट्रीयता की भावना उनकी पुस्तकों में भरी पड़ी है। इसी से राज- नीतिक क्षेत्र के बड़े बड़े व्यक्तियों ने उनकी प्रशंसा की है, यद्यपि उनकी राजनीति कहीं कहीं उनकी कविता में बाधक हो गई है। “विधवा का दर्पण" शीर्षक उनकी एक मुक्तक रचना, हिंदी में उनकी श्रव तक की कृतियों में उच्च स्थान की अधिकारिणी है। त्रिपाठीजी की "अन्वेषण" आदि अन्य छोटी छोटी रचनाएँ भी बड़ी ही सुंदर चन पड़ी हैं। ब्रजभाषा में कविता करनेवालों में हरिश्चंद्र के उपरांत प्रेमघन और श्रीधर पाठक श्रेष्ठ कवि हुए। इनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इनके उपरांत पंडित सत्यनारायण शर्मा निक कवि - कविरत्न और यावू जगन्नाथदास रत्नाकर का नाम उल्लेखनीय है। कविरत्नजी ब्रजमंडल के रहनेवाले ब्रजपति के अनन्य भक्त, पड़े ही रसिक और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। उनकी रचनाओं में ब्रज की माधुरी लवालय भरी है। स्वदेशा- नुराग को सच्ची झलक दिखलानेवाले थोड़े कवियों में इनकी गणना होगी। "रत्नाकरजी" ब्रजभापा के आधुनिक सर्वोत्कृष्ट कवि हैं। इनका "हरिश्चंद्र काव्य" सुंदर हुश्रा है, पर "गंगावतरण" नामक नवीन रचना में इनकी सच्ची काव्य-प्रतिभा चमक उठी है। इस ग्रंथ में रत्नाकरजी ने प्रकृति के नाना रूपों के साथ अपने हार्दिक भावों का सामंजस्य दिखा दिया है। रत्नाकरजी की भापा-शैली पभाकरी कही जा सकती है और अनुभावों के प्रस्तुत करने में उन्होंने आधुनिक मनो- विज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग किया है। ब्रजभाषा के अाधुनिक कवियों में वियोगी हरिजी की भी अच्छी प्रसिद्धि है। ये भक्त हैं, दार्श- निक हैं और वीररस की कविता करनेवाले हैं। यद्यपि यह युग व्रज- भाषा को नहीं है तथापि उपर्युक्त कचियों की रचनाएँ उत्कृष्ट भी हुई हैं और पठित जनता में उनका प्रचार भी हुआ है। आधुनिक काल के व्रजभाषा के कवियों में रत्नाकरजी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। व्रजभाप