पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३६८

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३६८ हिंदी साहित्य इस युग के अन्य कवियों में पंडित रूपनारायण पांडेय, याबू सियारामशरण गुप्त, पंडित अनूप शर्मा, पंडित गिरिधर शर्मा, पंडित अन्य कविगण कामताप्रसाद गुरु, पंडित रामचरित उपाध्याय, - पंडित लोचनप्रसाद पांडेय श्रादि भी उल्लेख योग्य हैं। रूपनारायणजी की भाषा चलती हुई सड़ी वोली है, उनकी कविता में पूरी रसात्मकता है। हिंदी की लीरिक कविताओं में उनकी 'वन-विहंगम' शीर्पक रचना उत्कृप्ट है। सियारामशरणजी ने सामाजिक कुरीतियों पर इतनी तीन व्यंग्यमयी और करण कविता की है कि चित्त पर स्थायी प्रभाव पड़े विना नहीं रहता। समाजनीति को फाव्योपयोगी पनाने की विधि हिंदी में सियारामशरणजी को सयसे अधिक पाती है। इस क्षेत्र में उनकी सफलता प्रायः अद्वितीय है। वीररस की फड़कती हुई कविता करने के कारण पंडित अनूप शर्मा को कुछ लोग आधुनिक भूपण कहते हैं। वास्तव में उनकी अनेक रचनाएँ अपूर्व श्रोजस्विनी हुई हैं। पंडित गिरिधर शर्मा "नवरत्न" संस्कृत के विद्वान् और हिंदी के अच्छे कवि हैं। इन्हें गुजराती और बॅगला की कविता-पुस्तकों के अनुवाद में अच्छी सफलता मिली है। गुरुजी की कविताओं में व्याकरण के नियमों की अच्छी रक्षा हुई है। पंडित रामचरित उपाध्याय और पंडित लोचनप्रसाद पांडेय को आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी ने प्रोत्साहित कर कवि बनाया था। उपाध्यायजी की रामचरितचितामणि अपने ढंग की सुंदर पुस्तक है। पांडेयजी की छोटी छोटी रचनाएँ अच्छी हुई हैं। इन कवियों के अतिरिक्त स्वर्गीय पंडित मन्नन द्विवेदी और पंडित माखनलाल चतुर्वेदी श्रादि की कविताएँ भी महत्त्व रखती हैं। हिंदी की काव्यधारा का सामान्य परिचय ऊपर दिया गया है। अब थोड़े समय से हिंदी कविता में रहस्यवाद या छायावाद की सृष्टि हो छायावाद रही है। कुछ लोग रहस्यवाद या छायावाद को आध्यात्मिक कविता बतलाते हैं और पाश्चात्य देशों के उदाहरण द्वारा यह सिद्ध करते हैं कि धर्मगुरुत्रों और शानियों ने ही रहस्यवाद की कविता की है। इंग्लैंड के अनेक रहस्यवादी कवि सांप्र- दायिक कवियों की श्रेणी में श्रावेंगे,. क्योंकि उनकी कविता में लोक- सामान्य भावों का समावेश नहीं है, विभिन्न संप्रदायों की विचारपरंपरा के अनुसार उसकी रचना हुई है। परंतु रहस्यवाद की कविता सांप्र. दायिक श्राधार को ग्रहण किए विना भी लिखी जा सकती है। इंग्लैंड के ब्लेक, फारस के उमर खैयाम और भारत के जायसी श्रादि कवियों ने बहुत कुछ ऐसी ही कविता की है। यह ठीक है कि उनकी काव्यगत