पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३७

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हिंदी भाषा कच्छी बोली के दक्षिण में गुजराती है। यद्यपि उसका क्षेत्र पहले बहिरंग भाषा का क्षेत्र रह चुका है पर गुजराती मध्यवर्ती भाषा मराठी है। अतः यहाँ यहिरंग भाषा की खिला हर सी गई है। इसके याद गुजराती के दक्षिण में मराठी श्राती है। यही दक्षिणी पहिरंग भाषा है। यह. पश्चिमी घाट और अरव समुद्र के मध्य की भाषा है। पूना की भाषा ही टकसाली मानी जाती है। पर मराठी घरार में से होते हुए यस्तर तक बोली जाती है। इसके दक्षिण में द्रविड़ मापाएँ बोली जाती है। पूर्व में गराठी अपनी पड़ोसिन छत्तीसगढ़ी से मिलती है । __मराठी की तीन विमापाएँ हैं। पूना के आसपास की टफसाली बोली देशी मराठी कहलाती है। यही थेहे भेद से उत्तर कोंकण में बोली जाती है, इससे इसे कोंकणी भी कहते हैं। पर कोंकणी एक दूसरी मराठी वोली का नाम है जो दक्षिणी कोंकण में बोली जाती है। पारिभाषिक अर्थ में दक्षिण कोंकणी ही कोंकणी मानी जाती है। मराठी की तीसरी विभाषा परार की वरारी है। हल्दी, मराठी और द्रविड़ को खिचड़ी बोली है जो यस्तर में बोली जाती है। मराठी भाषा में तद्धितांत, नामधातु आदि शब्दों का व्यवहार विशेष रूप से होता है। इसमें वैदिक स्वर के भी कुछ चिह्न मिलते हैं। पूर्व की ओर श्राने पर सबसे पहली घहिरंग भाषा बिहारी मिलती है। विहारी केवल विहार में ही नहीं, संयुक्त प्रांत के पूर्वी भाग अर्थात् बिडारी गोरखपुर-बनारस कमिश्नरियों से लेकर पूरे विहार " प्रांत में तथा छोटा नागपुर में भी वोली जाती है । यह पूर्वी हिंदी के समान हिंदी को चचेरी यहिन मानी जा सकती है। इसकी तीन विभाषाएँ-(१) मैथिली, जो गंगा के उत्तर दरभंगा के आसपास बोली जाती है। (२) मगही, जिसके केंद्र पटना और गया हैं। (३) भोजपुरी, जो गोरखपुर और बनारस कमिश्नरियों से लेकर बिहार प्रांत के पारा (शाहायाद), चंपारन और सारन जिलों में वोली जाती है। यह भोजपुरी अपने वर्ग को ही मैथिली-मगही से इतनी भिन्न होती है कि चैटर्जी भोजपुरी को एक पृथक वर्ग में ही रखना उचित समझते हैं। विहार में तीन लिपियाँ प्रचलित हैं। छपाई नागरी लिपि में होती है। साधारण व्यवहार में कैथी चलती है और कुछ मैथिलों में मैथिली लिपि चलती है। .