पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३७०

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३७० हिंदी साहित्य कहीं कहीं अाज का मार्ग निर्दिष्ट करते हैं, जैसे स्कंदगुप्त में। प्रत्येक नाटक में सुंदर गीत स्थल स्थल पर विखरे हुए हैं जिनमें काव्य का उत्कर्प दिसलाई देता है, यद्यपि भाषा-शैली तथा भावों की सूक्ष्मता के कारण सामान्य पाठकों के लिये उनमें दुरुहता आ गई है। अभी उनका 'कामायनी' नामक महाकाव्य प्रकाशित हुना है, जिसमें उन्होंने भारतीय इतिहास के अरुणोदय अर्थात् मनु-काल का पुनर्निर्माण किया है। और अपनी कल्पना और खोज के द्वारा उस युग का एक चित्र प्रस्तुत किया है जहाँ पुरातत्त्ववेत्ताओं की भी दृष्टि अच्छी तरह प्रवेश नहीं कर पाई है। __ भारतीय अद्वैतवाद को लेकर कान्यक्षेत्र में आनेवाले कवियों में पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' मुख्य हैं। निरालाजी ने प्रकृत कवि की सहज भावुकता के साथ साथ काव्य-क्षेत्र में दार्शनिक दृष्टिकोण का प्रवेश किया है। उनकी रचनाओं को यह दार्शनिकता सून रूप से वेधती चली जाती है और कहीं कहीं तो स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाती है। उनकी भावुकता उसे ऐसा बाना पहना लेती है जिससे वह काव्य के क्षेत्र में खटकनेवाली वस्तु नहीं रह जाती। शब्दों के द्वारा चित्र निर्माण में निराला बहुत निपुण हैं। उनमें स्वतंत्रता की प्रवृत्ति बहुत तीव रूप में विद्यमान है। छंद के बंधन से कविता को मुक्त करने का उन्होंने बहुत प्रयत्न किया है। ये घहुधा मुक्तक छंद में ही अपनी कविताएँ रचा करते हैं। परंतु उनके ये मुक्तछंद भी नाद-सौंदर्य से हीन नहीं हैं। उनकी अपनी गति है। कवित्त के आधार पर उनका निर्माण हुआ है जिससे वे हिंदी की प्रकृति के विरुद्ध नहीं पड़ते। निराला की शब्दावली बहुधा संस्कृत-गर्भित होती है, किंतु वे इस विषय में कट्टरता के पक्षपाती नहीं। परंतु कमी कभी संस्कृत के ऐसे अप्रचलित शब्दों का प्रयोग कर बैठते हैं कि बहुत सामान्य भाव भी दुरूह हो जाता है। निराला तथा पंडित सुमित्रानंदन पंत ने पश्चिमीय शैली का अधिक प्रश्रय लिया है और रवींद्रनाथ की भाँति वैष्णव कविता की भी सहायता ली है। सुमित्रानंदन पंत हलकी लाक्षणिकता को लेकर कोमलता की शक्ति का निदर्शन करने काव्यक्षेत्र में अवतरित हुए हैं। उनके भाव सुर्कुमार, भापा मधुर और कल्पना कोमल है। विशेषकर प्रकृति के नाना रूपों से उनके हृदय का सामंजस्य घटित हुअा है और उनके दर्शन से प्राप्त नालाद का उन्होंने अपने काव्य में वर्णन किया है। इसके ननंतर