पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३७३

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आधुनिक काल ३७३ थे; आजकल के समस्यापूर्तिकार पैसे की इच्छा से नहीं, अपने कवित्य- दर्प की तुष्टि के लिये काव्य करते हैं। इस विह्वलता के मूल में कवि का संदेश है। कवि अपने जीवन की अनुभूतियों के निष्कर्ष को संसार के सम्मुख रखना चाहता है, चाहे उससे कोई लाभ उठावे या न उठाचे। क्या यह संदेश समस्यापूर्तिकार दे सकता है ? उसके पास वह अनुभूति से भरा हृदय कहाँ ? उसे तो अपनी दिमागी कसरत का भरोसा रहता है, यह पद्योत्पादक हृदयहीन मशीन है जो बाहर से कोई पेच दवाने से चलती है, उसका परिचालन भीतर से नहीं होता। इसी से उसका काव्य भी निष्प्राण होता है। वह दूसरे के हृदय में सीधे पहुँचकर वह उथल-पुथल नहीं मचा सकता जो हृदय से निकली हुई सजीव स्पंदन करती हुई कविता कर सकती है। ___ यही नहीं, उसका काव्य जाति के सामने कोई आदर्श भी नहीं रख सकता। नीति का तो उसके लिये प्रश्न ही नहीं उठ सकता। अतएव उसका मूल्य कितना हो सकता है, यह स्पष्ट ही है। ___ कविता चरित्र निर्माण के लिये सबसे अधिक प्रभावोत्पादक साधन है, क्योंकि वह मस्तिष्क के द्वारा नहीं, हृदय के द्वारा शिक्षा देती है। कधि अपने ही श्राप शिक्षक और शिष्य तथा नेता और अनु- यायो होता है; वह लोगों के उपर खुदा के कहर की तरह नहीं गिर पड़ता, वह उनको गालियाँ नहीं देता, उनके श्रागे नरक का भय नहीं रखता, प्रत्युत उनके मन में बुरे कार्यों से ग्लानि उत्पन्न करता है और भले कार्यों के लिये प्रम। यह कवि का बहुत बड़ा महत्त्व है। अब यदि यह काम ऐसे लोगों के हाथ पड़ गया जिनमें कुछ भी तय नहीं है, केवल पापंड है, यशोलिप्सा है, दिखावट है, तो जाति का क्या उप- कार हो सकता है? हिंदी भाषा की कविता के भविष्य को सुधारने के लिये यह प्राव- श्यक है कि उसमें इस प्रकार के कांच के नकली मणियों का आदर न हो और उसका प्रवाह झूठे छायावाद, पापंड और समस्यापूर्ति की प्रवृत्ति की धार से .हठाकर किसी नए उद्देश्य की ओर मोड़ा जाय। हिंदी भाषा के भारतीय राष्ट्रभाषा होने के कारण यह और भी प्राव- श्यक हो जाता है।" [एक अप्रकाशित लेस से