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आधुनिक काल

पुस्तके निकल रही थीं तब छापने की कल इस देश में आ चुकी थी, जिससे पुस्तकों के प्रचार में बड़ी सहायता मिली। ___ छापेखानों के फैल जाने पर हिंदी की पुस्तकें शीघ्रता से बढ़ चली। इसी समय सरकारी अँगरेजी स्कूल भी खुले और उनमें हिंदीrhआधुनिक उर्दू का झगड़ा खड़ा किया गया । मुसलमानों की ओर से सरकार को यह समझाया गया कि उर्दू को छोड़कर दूसरी भाषा संयुक्त प्रांत में है ही नहीं। कचहरियों में उर्दू का प्रयोग होता है, मदरसों में भी होना चाहिए। परंतु सत्य का तिरस्कार बहुत दिनों तक नहीं किया जा सकता। देवनागरी लिपि की सरलता और उसका देशव्यापी प्रचार अंगरेजों की दृष्टि में या चुका था। लिपि के विचार से उर्दू की क्लि- एता और अनुपयुक्तता भी आँखों के सामने आती जा रही थी। परंतु नीति के लिये सब कुछ किया जा सकता है। अँगरेज समझकर भी नहीं समझना चाहते थे। इसी समय युक्त प्रांत में स्कूलों के इंस्पेक्टर हिंदी के पक्षपाती काशी के राजा शिवप्रसाद नियुक्त किए गए। राजा साहब के प्रयत्न से देवनागरी लिपि स्वीकार की गई और स्कूलों में हिंदी को स्थान मिला। राजा साहव ने अपने अनेक परिचित मिनों से पुस्तके लिखवाई और स्वयं भी लिखीं। उनकी लिखी हुई कुछ पुस्तकों में अच्छी हिंदी मिलती है, पर अधिकांश में उर्दू प्रधान भाषा ही उन्होंने लिखी। ऐसा उन्होंने समय और नीति को देखते हुए अच्छा ही किया। इसी समय के लगभग हिंदी में संस्कृत के शकुंतला नाटक श्रादि का अनुवाद करनेवाले राजा लक्ष्मणसिंह हुए जिनकी कृतियों में सर्वत्र शुद्ध संस्कृत-विशिष्ट खड़ी बोली प्रयुक्त हुई है। दोनों राजा साहवों ने अपने अपने ढंग से हिंदी का महान् उपकार किया था इसमें कुछ भी संदेह नहीं। भारतेंदु हरिश्चंद्र के कार्य-क्षेत्र में श्राते हो हिंदी में समुन्नति का युग श्राया। अव तक तो खड़ी बोली गद्य का विकास होता रहा और गद्य के क्षेत्र में भारत पाठशालाओं के उपयुक्त छोटी छोटी पुस्तक लिखी जाती रहीं, पर अब साहित्य के अनेक अंगों पर - ध्यान दिया गया और उनमें पुस्तक-रचना का प्रयत्न किया गया। भारतेंदु ने अपने बंगाल-भ्रमण के उपरांत बँगला के नाटकों का अनुवाद किया और मौलिक नाटकों की रचना की । कविता में देश म्/के भावों का प्रादुर्भाव हुश्रा। पत्र-पत्रिकाएँ निकली। हरिश्चंद्र मैगजीन और हरिश्चंद्र पत्रिका भारतेंदुजी के पत्र थे। छोटे छोटे निबंध भी लिखे जाने लगे। उनके लिखनेवालों में हरिश्चंद्र के