पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३७८

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३७० हिंदी साहित्य अतिरिक्त पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित प्रतापनारायण मिश्र, पंडित पदरीनारायण चौधरी, ठाकुर जगमोहनसिंह श्रादि थे। नाटककारों में श्रीनिवासदास और राधाकृष्णदास का नाम उल्लेखनीय है। "परीक्षा- गुरु" नामक एक अच्छा उपन्यास भो उस समय लिखा गया। (आर्य- समाज के कार्यकर्ताओं में स्वामी दयानंद के उपरांत सबसे प्रसिद्ध पंडित भीमसेन शर्मा हुए जिन्होंने नार्यसमाज का अच्छा साहित्य तैयार 'किया। पंडित अंबिकादत्त व्यास भी उस काल के मौलिक लेखकों में से थे। अखवार-नवीसों में बाबू वालमुकुंद गुप्त सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए। इस प्रकार हम देखते हैं कि गद्य के विभिन्न अंगों को लेकर बड़े ही उत्साहपूर्वक उनमें मौलिक रचनाएँ करनेवाले हिंदी के ये उन्नायक बड़े ही शुभ अवसर पर उदय हुए थे। इनकी वाणी में हिंदी के घाल्य- काल की झलक है, पर यौवनागम की सूचना भी मिलती है। देशप्रेम और जातिप्रेम की भावनाओं को लेकर साहित्यक्षेत्र में पाने के कारण इन सबकी रचनाएँ हिंदी में अपने ढंग की अनोखी हुई हैं। . भारतेंदु की नाटक-रचना शैली में भारतीय शैली और पाश्चात्य शैली का सम्मिश्रण हुना है। (भारतीय शैली के अंकों और गर्मीकों तथा विक्रमक श्रादि को बदलकर बँगला के ढंग पर अंक और दृश्य की परिपाटी चली, पर संस्कृत के सूत्रधार नटी प्रस्तावना आदि ज्यों के त्यों बने रहे। चरित्रों का चित्रण करने में भारतेंदु ने संस्कृत के वर्गी- कारणों का अनुसरण किया, पात्रों की वैयक्तिक विशेपताओं की ओर ध्यान नहीं दिया। यद्यपि उनके अनेक नाटक अनुवादित नाटक ही हैं और उनके मौलिक अधिकांश नाटकों में भी कथानक का निर्माण उन्हें नहीं करना पड़ा है, पर कुछ नाटकों में उन्होंने अपनी कथानक-निर्माण की शक्ति का अच्छा परिचय दिया है। सत्य हरिश्चंद्र में सत्य का उच्च श्रादर्श दिखाया गया है। अन्य नाटकों में प्रेम की पवित्र धारा वही है। भारत-दुर्दशा में स्वदेशानुराग चमक उठा है। भारतेंदु की परिमार्जित गद्य शैली का व्यवहार उनके सभी नाटकों में देख पड़ता है, हाँ, विषय और प्रसंग के अनुसार मापा सरल अथवा जटिल हो गई है। लाला श्रीनिवासदास के "रणधीर प्रेममोहिनी”, “संयोगता स्वयंवर" श्रादि नाटक तथा बाबू राधाकृष्णदास का "महाराणा प्रताप नाटक" साहि- त्यिक दृष्टि से अच्छे हैं, यद्यपि रंगशाला के उपयुक्त नहीं। प्रेमघनजी का "भारत सौभाग्य नाटक भी अच्छा है, पर यहुत बड़ा हो गया है। राय देवीप्रसाद पूर्ण का "चंद्रकला भानुकुमार नाटक" गद्य काव्य की शैली में लिखी गई सुंदर कृति है।