पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आधुनिक काल ३८१ शैली चली थी, उस प्रकार हिंदी में स्थानभेद के अनुसार शैलीभेद तो नहीं हुआ पर व्यक्तिगत कितनी ही शैलियां निकली जो आगे चलकर वर्गवद्ध शैलियाँ बन गई। स्थान का भी प्रभाव पड़ा। काशी के अधिकांश लेखक संस्कृत-प्रधान भाषा लिखते हैं, कानपुर और लखनऊ के साहित्यिकों पर द्विवेदीजी की भाषा का प्रभाव पड़ा है। प्रयाग में दोनों श्रेणी के लेखक मिलते हैं। देहली केंद्र के लेखकों में पंडित पद्मसिंह शर्मा अपनी चटपटी शैली के लिये प्रसिद्ध हैं। हास्यविनोद, बहस-मुवाहसा, व्यंग्य, व्याख्यान श्रादि के उपयुक्त कितनी ही शेलियों का आविर्भाव हुश्रा और हो रहा है। अँगरेजी के विद्वानों के हिंदी की ओर झुकने के कारण अँगरेजी रचनाप्रणाली का प्रभाव भी विशेष पड़ा। इस प्रकार हिंदी में कितनी ही शैलियों का जन्म और विकास हुआ। मासिक पत्रिकाओं के निकलने से सामयिक साहित्य की अच्छी श्रीवृद्धि हुई। राजनीतिक आंदोलन के फल-स्वरूप हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का उद्योग किया जा रहा है। हिंदी-साहित्य-सम्मेलन ने हिंदी के प्रचार में अच्छा योग दिया है। राजनीतिक आंदोलन और शिक्षा की उन्नति के साथ ही पत्र-पत्रिकाएँ बढती जा रही है। साहित्य के सय अंग भर रहे है। विश्वविद्यालयों में हिंदी उच्चतम कक्षाओं में पढ़ाई जाने लगी है। विविध विषयों की महत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। ___ पहले हम हिंदी कविता की अब तक की प्रगति का संक्षिप्त विव- रण दे चुके हैं, गद्य के विविध अंगों का आधुनिक-काल में जो विकास हुअा है अब उसका दिग्दर्शन कराते हैं- भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय से ही साहित्यिक समालोचना होने लगी थी, पर पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के समय से उसका स्वरूप समालोचना निश्चित हुश्रा । द्विवेदीजी की समालोचनाएँ अधिकांश निर्णयात्मक होती थीं। सरस्वती में पुस्तकों की भी और संस्कृत तथा हिंदी के कुछ कवियों की भी द्विवेदीजी ने समालोचनाएँ लिखीं। द्विवेदीजी की चलाई हुई पुस्तक-समीक्षा की संक्षिप्त प्रणाली का अनुसरण अब तक मासिक पत्रिकामों में हो रहा है। द्विवेदीजी की समालोचनाएँ भाषा की गड़बड़ी को दूर करने में यहुत सहायक हुई, साथ ही बालोचना में संयत होकर लिसने का ढंग भी प्रतिष्ठित हुश्रा। द्विवेदीजी के समकालीन समालोचकों में मिथ. पंधुत्रों का स्थान विशेष महत्त्वपूर्ण है। उनका हिंदी-साहित्य का इतिहास ग्रंथ अपने ढंग की पहली रचना होने के कारण पड़ी मूल्यवान् पस्तु हुई। हिंदी-नवरत्न में कवियों की समालोचना का सूत्रपात हुआ।