पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३९

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तीसरा अध्याय हिंदी का ऐतिहासिक विकास हिंदी का विकास क्रमशः प्राकृत और अपभ्रंश के अनंतर हुआ है। पर पिछली अपभ्रंश में भी हिंदी के वीज बहुत स्पट रूप से दिखाई पड़ते तीन की है, इसी लिये इस मध्यरतर्ती नागर अपनंश को कुछ अवस्थाएँ विद्वानों ने पुरानी हिंदी माना है। यद्यपि अपभ्रंश की कविता बहुत पीछे की बनी हुई भी मिलती है, परंतु हिंदी का विकास चंद वरदाई के समय से स्पष्ट देस पड़ने लगता है। इसका समय वारहवीं शताब्दी का अंतिम अर्ध भाग है, परंतु उस समय भी इसकी भाषा अपभ्रंश से बहुत भिन्न हो गई थी। अपभ्रंश का यह उदाहरण लीजिए- भल्ला हुया जु मारिया बहिणि महारा कतु । लज्जेज्ज तु वयसिबह जह भग्गा घरु एतु ॥१॥ पुत्ते जाए कयणु गुणु अवगुणु कवणु मुएए । जा ययी को भुइडी चम्पिजइ अवरेण ॥ २॥ दोनों दोहे हेमचंद्र के है। हेमचंद्र का जन्म संवत् १९४५ में और मृत्यु सं० १२२६ में हुई थी। श्रतएव यह माना जा सकता है कि ये दोहे सं० १२०० के लगभग अथवा उसके कुछ पूर्व लिखे गए होगे। अव हिंदी के श्रादि कवि चंद के कुछ छंद लेकर मिलाइए और देखिए, दोनों में कहाँ तक समता है। उच्चिष्ठ छद चदह चयन मुनत सुजपिय नारि । तनु पवित्त पावन कविय उकवि अनूठ उधारि ।। ताड़ी खुल्लिय ब्रह्म दिक्खि इक असुर अदभुत । दिग्ध देह चरा सीस मुष्प करना जस जप्पत ।। हेमचंद्र और चंद की कविताओं को मिलाने से यह स्पष्ट चिदित होता है कि हेमचंद्र की कविता प्राचीन है और चंद की उसकी अपेक्षा यहुत अर्वाचीन । हेमचंद्र ने अपने व्याकरण में अपभ्रंश के कुछ उदा. हरण दिए हैं, जिनमें से ऊपर के दोनों दोहे लिए गए है। पर ये सय उदाहरण स्वयं हेमचंद्र के बनाए हुए ही नहीं हैं। संभव है कि इनमें