पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३६२
हिन्दी सहित्य


सारांश यह कि क्या कला-पत और क्या भाव-पक्ष दोनों में अभी पूर्ण परिपक्वता नहीं पाई है, पर हिंदी दोनों की ओर दृढ़तापूर्वक पर अग्रसर हो रही है। सच बात तो यह है कि - हिंदी भाषा और साहित्य का वर्तमान रूप बड़ा चमत्कारपूर्ण है। इसमें भावी उन्नति के पीज घर्तमान हैं जो समय पाकर अवश्य पल्लवित और पुप्पित होंगे। परिवर्तन काल में जिन गुणों का सब यातों में होना स्वाभाविक है वे सब हिंदी भापा और साहित्य के विकास में स्पष्ट देख पड़ते हैं और काल का धर्म भी पूर्णतया प्रतिबिंबित हो रहा है। इस अवस्था में जीवन है, प्राण है, उत्साह है, उमंग है, और सबसे बढ़कर बात यह है कि भविष्योन्नति के मार्ग पर दृढ़तापूर्वक अग्रसर होने की शक्ति और कामना है। जिनमें ये गुण हैं वे अवश्य उन्नति करते हैं। हिंदी में ये गुण वर्तमान हैं और उसकी उन्नति अवश्यंभावी है। हिंदी और उसके साहित्य का भविष्य घड़ा ही उज्ज्वल और सुंदर देख पड़ता है। श्रादर तथा सम्मान के पात्र वे महानुभाव हैं जो अपनी कृतियों से इसके मार्ग के कंटकों और झाड़-झंखाड़ों को दूर कर उसे सुगम्य, प्रशस्त और सुरम्य यना रहे हैं।