पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/४१

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४० हिंदी भाषा साथ ही उसमें प्राचीनता के चिह भी कम नहीं है। उसक कुछ अंश अवश्य प्राचीन जान पड़ते हैं। चंद का समकालीन जगनिक कवि हुना है जो बुंदेलखंड के प्रतापी राजा परमाल के दरबार में था। यद्यपि इस समय उसका पनाया कोई ग्रंथ नहीं मिलता, पर यह माना जाता है कि उसके घनाए ग्रंथ के अाधार पर ही श्रारंभ में "पालखंड" की रचना हुई थी। अभी तक इस ग्रंथ की कोई प्राचीन प्रति नहीं मिली है; पर संयुक्त प्रदेश और बुंदेलखंड में इसका बहुत प्रचार है और यह घरावर गाया जाता है। लिखित प्रति न होने तथा इसका रूप सर्वथा श्राहा गानेवालों की स्मृति पर निर्भर होने के कारण इसमें बहुत कुछ प्रक्षिप्त अंश भी मिलता गया है और भाषा में भी फेरफार होना गया है। हिंदी के जन्म का समय भारतवर्ष के राजनीतिक उलटफेर का था। उसके पहले ही से यहाँ मुसलमानों का श्राना प्रारंभ हो गया था श्रीर इस्लाम धर्म के प्रचार तथा उत्कर्षवर्धन में उत्साही और दृढ़संकल्प मुसलमानों के थाक्रमणों के कारण भारतवासियों को अपनी रक्षा की चिता लगी हुई थी। ऐसी अवस्था में साहित्य-कला की वृद्धि की किसको चिता हो सकती थी। ऐसे समय में तो चे ही कवि सम्मानित हो सकते थे जो केवल कलम चलाने में ही निपुण न हो, घरन् तलवार चलाने में भी सिद्धहस्त हो तथा सेना के अग्रभाग में रहकर अपनी पाणी द्वारा सैनिकों का उत्साह बढ़ाने में भी समर्थ हो। चंद और जगनिक ऐसे ही कवि थे, इसी लिये उनकी स्मृति अब तक बनी है। परंतु उनके अनंतर कोई सौ वर्ष तक हिंदी का सिंहासन सूना देख पड़ता है। अतएव हिंदी का आदि काल संवत् १०५० के लगभग प्रारंभ होकर १३७५ तक चलता है। इस काल में विशेषकर वीर-काव्य रचे गए थे। ये काव्य दो प्रकार की भाषाओं में लिखे जाते थे। एक भापा का ढांचा तो बिलकुल राजस्थानी या गुजराती का होता था जिसमें प्राकृत के पुराने शब्द भी यहुतायत से मिले रहते थे। यह भाषा, जो वारणों में बहुत काल पीछे तक चलती रही है, डिंगल कहलाती है। दूसरी भाषा एक सामान्य साहित्यिक भापा थी जिसका व्यवहार ऐसे विद्वान् कवि करते थे जो अपनी रचना को अधिक देशव्यापक बनाना चाहते थे। इसका ढाँचा पुरानी प्रजमापा का होता था जिसमें थोड़ा बहुतं खड़ी या पंजाबी का भी मेल हो जाता था। इसे पिंगल' भापा कहने लगे थे। वास्तव में हिंदी का संबंध इसी भाषा से है। पृथ्वीराज रासो इसी साहित्यिक सामान्य भाषा में लिखा हुआ है। बीसलदेव रासो की भापा साहित्यिक