पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/४६

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हिंदी का ऐतिहासिक विकास it is sometimes called 'High Hindi', is the prose liter- ary language of those Hindus who did not employ Urdu. It is of modern origin, having been introduced under English.influence at the commencement of the last century. ......Lallulal, under the inspiration of Dr. Gilchrist, changed all this by writing the well- known Prem-Sagar, a work which was, so far as the prose portion went, practically written in Urdu with Indo-Aryan words substituted wherever a writer in that form of speech would use Persian ones." - . अर्थात्-"अतः यह हिंदी (संस्कृत-बहुल हिंदुस्तानी अथवा कम से कम वह हिंदुस्तानी जिसमें फारसी शब्दों का मिश्रण नहीं है) जिसे कभी कभी लोग "उच्च हिंदी" कहते हैं, उन हिंदुओं की गद्य साहित्य की भाषा है जो उर्दू का प्रयोग नहीं करते। इसका प्रारंभ हाल में हुश्रा है और इसका व्यवहार गत शताब्दी के प्रारंभ से अँगरेजी प्रभाव के कारण होने लगा है।.... लल्लूलाल ने डा० गिलक्रिस्ट की प्रेरणा से सुप्रसिद्ध प्रेम-सागर लिखकर ये सब परिवर्तन किए थे। जहाँ तक गद्य भाग का संबंध है, यहाँ तक यह ग्रंथ ऐसी उर्दू भाषा में लिखा गया था जिसमें उन स्थानों पर भारतीय श्रार्य शन्द रख दिए गए थे जिन स्थानों पर उर्दू लिखनेवाले लोग फारसी शब्दों का व्यव- हार करते हैं।" . ग्रियर्सन साह्य ऐसे भापातत्वविद् की लेखनी से ऐसी बात न निकलनी चाहिए थी। यदि लल्लूजीलाल नई भाषा गढ़ रहे थे तो क्या आवश्यकता थी कि उनकी गढ़ी हुई भापा उन साहबों को पढ़ाई जाती जो उस समय केवल इसी अभिप्राय से हिंदी पढ़ते थे कि इस देश की घोली सीखकर यहां के लोगों पर शासन करे? प्रेमसागर उस समय जिस भाषा में लिखा गया, वह लल्लूजीलाल की जन्मभूमि 'श्रागरा' की भाषा:थी, जो अब भी बहुत कुछ उससे मिलती जुलती योली जाती है। उनकी शैली में ब्रजभाषा के मुहाविरों का जो पुट देख पड़ता है, वह उसकी स्वतंत्रता, प्रचलन और प्रौढ़ता का घोतक है। यदि केवल अरबी, फारसी शब्दों के स्थान में संस्कृत शब्द रखकर भापा गढ़ी गई होती तो यह बात असंभव थी। कल के राजा शिवप्रसाद की भाषा में उर्दू का जो रंग है, वह प्रेम-सागर की भाषा में नहीं पाया जाता । इसका कारण स्पष्ट है। राजा साहब ने उर्दू भाषा को हिंदी का फलेवर दिया