पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/४७

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४६ हिंदी भाषा है और लल्लूजीलाल ने पुरानी ही खोल दी है। एक लेखक का व्यक्तित्व उसकी भाषा में प्रतिबिंबित है तो दूसरे का उसके लोक व्यवहार- ज्ञान में। दूसरे, लल्लूजीलाल के समकालीन श्रीर उनके कुछ पहले के सदल मिश्र, मुंशी सदासुख और सैयद इंशाउल्लाखों की रचनाएँ भी तो खड़ी बोली में ही हैं। उसमें ऐसी प्रौढ़ता और ऐसे विन्यास का श्राभास मिलता है जो नई गढ़ी हुई भाषा में नहीं, किंतु प्रचुर प्रयुक्त तथा शिष्ट-परिगृहीत भाषाओं में ही पाया जा सकता है। इसके अति- रिक्त तेरहवीं शताब्दी के मध्य भाग में वर्तमान अमीर खुसरो ने अपनी कविता में इसी भाषा का प्रयोग किया है। पहले गद्य की सृष्टि होती है, तव पद्य की। यदि यह भापा उस समय न प्रचलित होती तो अमीर खुसरो ऐसा "घटमान" कवि इसमें कभी कविता न करता। स्वयं उसकी कविता इसकी साक्षी देती है कि वह चलती रोजमर्रा में लिखी गई है, न कि सोच सोचकर गढ़ी हुई किसी नई चोली में। कविता में खड़ी बोली का प्रयोग मुसलमानों ने ही नहीं किया है, हिंदू कवियों ने भी किया है। यह बात सच है कि खड़ी बोली का मुख्य स्थान मेरठ के आस-पास होने के कारण और भारतवर्ष में मुसल. मानी राजशासन का केंद्र दिल्ली होने के कारण पहले पहल मुसलमानों और हिंदुओं की पारस्परिक बातचीत अथवा उनमें भावों और विचारों का विनिमय इसी भाषा के द्वारा प्रारंभ हुश्रा और उन्हीं की उत्तेजना से इस भाषा का व्यवहार बढ़ा। इसके अनंतर मुसलमान लोग देश के अन्य भागों में फैलते हुए इस भाषा को अपने साथ लेते गए और उन्होंने इसे समस्त भारतवर्ष में फैलाया। पर यह भापा यहीं की थी और इसी में मेरठ प्रांत के निवासी अपने भाव प्रकट करते थे। मुसलमानों के इसे अपनाने के कारण यह एक प्रकार से उनकी भापा मानी जाने लगी। श्रतएव मध्य काल में हिंदी भाषा तीन रूपों में देख पड़ती है-- ग्रजभाषा, अवधी और खड़ी बोली। जैसे प्रारंभ काल की भाषा प्राकृत-प्रधान थी, धैसे ही इस काल की तथा इसके पीछे की भापा संस्कृत-प्रधान हो गई। अर्थात् जैसे साहित्य की भाषा की शोभा बढाने के लिये श्रादि काल में प्राकृत शब्दों का प्रयोग होता था, वैसे मध्य काल में संस्कृत शब्दों का प्रयोग होने लगा। इससे यह तात्पर्य नहीं निक- लता कि शब्दों के प्राकृत रूपों का प्रभाव हो गया। प्राकृत के कुछ शब्द इस काल में भी यरावर प्रयुक्त होते रहे; जैसे भुयाल, सायर, गय, घसह, नाह, लोयन श्रादि।

  • दे. काव्यमीमांसा पृ० १६ ।