पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/५३

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रात सव हिंदी भाषा तत्सम अर्ध-तत्सम तद्भव अक्षर श्रच्छर अक्खर, श्राखर रात्रि सर्व देव दई ___ कुछ शब्द ऐसे भी मिलते हैं जिनकी व्युत्पत्ति का कोई पता ही नहीं चलता। संभव है कि भाषा-विज्ञान की अधिक चर्चा होने तथा शब्दों की व्युत्पत्ति की अधिक खोज होने पर इनके मूल आधार का भी पता चल जाय। ऐसे शब्दों को 'देशज' कहते हैं। जैसे, तेंदुश्रा, खिड़की, (खडक्किका-कादम्बरी टीका ?) घूत्रा, ठेस इत्यादि। पर इस समय तक तो इन शब्दों का देशज माना जाना अल्पशता का ही सूचक है। ____ हिंदी भापा में एक और प्रकार के शब्द पाए जाते हैं जो किसी पदार्थ की वास्तविक या कल्पित ध्वनि पर बने हैं और जिन्हें 'श्रनुकरण' शब्द कहते हैं, जैसे-खटखटाना, चटचटाना, फड़फड़ाना, धमकाना इत्यादि। संसार की सव भाषाओं में ऐसे शब्द. पाए जाते हैं। इसी थानुकरण सिद्धांत पर मनुष्यों की भाषा का विकास हुआ है। इनके अतिरिक्त हिंदी में बहुत से ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जिन्हें कहने को तो तत्सम कहते हैं, पर वे तत्सम नहीं हैं। इनमें से कुछ शब्द तो बहुत दिनों से चले आते हैं। जैसे-थाप, प्रण, क्षत्राणी, सिंचन, अमि. लापा, सृजन, मनोकामना श्रादि और अधिक अाजकल अल्प-संस्कृतशों के गढ़े हुए चल रहे हैं। जैसे-राष्ट्रीय, जागृत, पौर्वात्य, उन्नायक आदि श्रादि । इन्हें चाहे तो तत्समामास कह सकते है। कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिन्हें न तत्सम कह सकते हैं, न तद्भव और न देशज । जैसे, (संस्कृत 'मातृष्वसा' से प्रसिद्ध स्त्रीत्व-व्यंजक 'ई' प्रत्यय लगाकर जो 'मौसी' शब्द यना है वह तो तद्भव है, पर उससे बना पुलिंग 'मोसा' शब्द न तत्सम है, न तद्भव और न देशज। ऐसे शब्दों को अर्धतद्भव या तद्भवाभास कहें तो कह सकते हैं। किंतु अब तक विद्वानों ने इन्हें कोई नाम नहीं दिया है। कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो या तो दो भाषाओं के शब्दों के समास से, जैसे-'कौसिल निर्वाचन', 'सबूट पादप्रहार', 'अमन सभा', 'जगन्नाथ वस्श', 'रामचीज' श्रादि आदिः या विजातीय प्रकृति अथवा प्रत्यय के योग से; जैसे-उजडुता, रसदार, अकाट्य, गुरुडस, लाटत्व प्रादि बनते हैं। दो भापानों से बने होने के कारण यदि इन्हें 'द्विज' कह दिया जाय तो, आशा है, किसी को चुरा न लगेगा।