पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/५४

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हिंदी पर अन्य भाषाओं का प्रभाव कभी कभी किसी शब्द का प्रकार, सादृश्य या संबंध बोधन करने के लिये प्रांशिक श्रावृत्ति कर दी जाती है, जैसे, लोटा नोटा अर्थात् लोदा और तत्सदृश अन्य घस्तुएँ। इसी प्रकार की प्रकारार्थक द्विरुक्ति आधुनिक आर्यभाषा एवं द्रविड़ भापानों में ही देखी जाती है। जैसे-हिंदो-घोड़ा-दौड़ा; बंगला-घोड़ा-टोड़ा; मैथिली-घोड़ा-तोड़ा। गुजराती-घोड़ो-योड़ो; मराठी-घोड़ा-थोड़ा; सिंहली-अभ्या-वश्वया; - तामिल-कुदिरइ-किदिरइकनड़ी-कुदिरे-गिदिरे तेलुगु-गुर्रमु-गिर्रमु । इसी प्रकार, हिंदी-जल-बल या जल ओल अर्थात् जल-जलपान; बँगला-जोल टोल; मराठी-जल-चिल; तामिल-तरुणीर किरणार कनडी-नीर-गीरु आदि। हिंदी में इस प्रकार के प्रतिध्वनि शब्दों की सृष्टि पर बहुत कुछ द्रविड़ भाषाओं का प्रभाव समझना चाहिए। तत्सम और तद्भव शब्दों के रूप-विभेद के कारण प्रायः उनके अर्थ में भी विभेद हो गया है। विशेषता यह देखने में आती है कि तत्सम शब्द कभी सामान्य अर्थ में प्रयुक्त होता है, पर उसी का तद्भव रूप विशेष अर्थ देता है; जैसे-गर्भिणी और गाभिन स्थान और थान । कभी तत्सम शब्द से महत्त्व का भाव प्रकट किया जाता है और उसी के तद्भव रूप से लघुता का, जैसे-देखना और दर्शन । यह भी देखने में श्राता है कि कभी कभी एक ही द्वयर्थक शब्द के तत्सम और तद्भव रूपों में भिन्न भिन्न अर्थ हो जाते हैं। जैसे-'वंश' शब्द के तत्सम रूप का अर्थ कुटुंय और तद्भव रूप बाँस का अर्थ तृण-विशेप ही लिया जाता है। एक ही शब्द नानार्थक कैसे हो जाता है अथवा एक ही प्रकार के भाव का द्योतन करने के लिये अनेक पर्यायों की कैसे सृष्टि होती है, या किसी एक पर्याय की अवयवार्थ-योधकता अन्य पर्याय को, चाहे उसका अवयवार्थ कुछ और ही हो, कैसे प्राप्त हो जाती है, जैसे-भोगी साँप को भी कहते हैं और भोग करनेवाले विलासी को भी। सांप का पर्याय- वाचक भुजंग शब्द वेश्या का उपभोग करनेवाले विलासी के लिये प्रयुक्त होता है, यद्यपि भुजंग का अवयवार्थ है टेढ़ी चाल चलनेवाला। इन अनेक यातों की स्वतंत्र विवेचना होनी चाहिए। पर इस प्रसंग को हम यहां नहीं छेड़ना चाहते । अाधुनिक हिंदी में तद्भव शब्दों से क्रियापद बनते हैं। पर तत्सम शब्दों से क्रियापद नहीं बनते। उनमें 'करना' या 'होना' जोड़कर उनके क्रियापद रूप बनाए जाते हैं। जैसे 'देखना' और 'दर्शन करना' या 'दर्शन होना'। पुरानी कविता में तत्सम शब्दों से क्रियापद बनाए गए हैं और उनका प्रयोग भी बहुत कुछ हुआ है। अाजकल कुछ क्रियापद