पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/५६

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हिंदी पर अन्य भाषाओं का प्रभाव १२८ शब्दों में से २१ तद्भव और १०७ तरसम है। इससे घे यह सिद्धांत निकालते हैं कि भारतवर्ष के आदिम द्रविड़ निवासियों की भापात्रों का जो प्रभाव अाधुनिक भापात्रों पर पड़ा है, वह प्राफतों के द्वारा पडा है। अय कई आधुनिक भार्य-भापात्रों के भी शब्द हिंदी में मिलने लगे है; जैसे-मराठी के लागू, चालू , पाजू श्रादि: गुजराती के लोहनी, कुनवी, हड़ताल आदि और पैंगला के प्राणपण, चूड़ांत, मद्र लोग, गल्प, नितांत, सुविधा आदि। इसी प्रकार कुछ अनार्य-भाषाओं के शब्द भी मिले हैं, जैसे-तामिल पिल्हई से पिल्ला, शुलुटु से चुपट, तिब्बती- चुंगी; चीनी--चाय, मलय-सावू इत्यादि। ___ हिंदी के शब्द-भांडार पर मुसलमानों और अँगरेजों की भाषाओं का भी कुछ कम प्रभाव नहीं पड़ा है। मुसलमानों की भापाएँ फारसी, अरबी और तुर्की मानी जाती है। इन तीनों भाषाओं के शब्दों का प्रयोग मुसलमानों द्वारा अधिक होने के कारण तथा मुसलमानों का उत्तरी भारत पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ने के कारण ये शब्द हमारी चोलचाल की भाषा में बहुत अधिकता से मिल गए हैं और इसी कारण साहित्य की भाषा में भी इनका प्रयोग चल पड़ा है। पर यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इनमें से अधिकांश शब्दों का ध्वन्यात्मक विकास होकर हमारी भाषा में आगम हुआ है। यह एक साधारण सिद्धांत है कि ग्राह्य भाषा का विजातीय उच्चारण ग्राहक भापा के निकटतम सजा- तीय उच्चारण के अनुकूल हो जाता है। इसी सिद्धांत के अनुसार मुसलमानी शब्दों का भी हिंदी में रूपांतर हुआ है। ये परिवर्तन हम संक्षेप में नीचे देते हैं- (१.) और हिंदी में त हो जाते हैं। जैसे का तलय और का तकरार। (२) और हिंदी में स हो जाते हैं। जैसे ० का सावित, MS. का साईस, ho का साहिब या साहय । का प्रायःश हो जाता है, यद्यपि योलचाल की भापा में वह भी प्रायः स ही रहता है। (३)ीर सब हिंदी में ज हो जाते हैं, जैसे 8 का जरा, UGH का जमीन, UAL का जामिन, 1 का जाहिर। कहीं कहीं अंतिम द में भी परिवर्तित होता है; जैसे का कागद । (४) और हिंदी में ह हो जाते हैं; जैसे JD का हाल, का हर । शब्दों के अंत में पाया हुश्रा : जो प्रायः विसर्ग के समान उच्चरित होता है, हिंदी में श्रा में परिवर्तित हो जाता है। जैसे का शुभा, saye का पर्दा या परदा, shra का मुर्दा या मुरदा, ska का ज्यादा।