पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/६२

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हिंदी पर अन्य मापात्रों का प्रभाव हिंदी में तन्य शब्दों की संख्या बहुत अधिक है। ये संस्थत से प्रारत या अपभ्रंश द्वारा विरत होकर हिंदी में पाए हैं। इनके विकृत होने में पागम, लोप, विपर्यय तथा विकार के नियम लगते हैं। ये विकार शब्द के श्रादि, मध्य या अंत में होते हैं। सबसे अधिक परि- घर्तन शन्दों के मध्य में होता है। इसके अनंतर श्रारंभ के परिवर्तनों की संख्या है और अंत में तो बहुत कम परिवर्तन होते हैं। इस विषय पर एक स्वतंत्र पुस्तक ही लिखी जा सकती है। अतः हम यहाँ फेवल यही घतला देना चाहते है कि प्रधानतः प्रयतलाघव, स्वरसाम्य और गुण- साम्य श्रादि के कारण अनेक प्रकार के परिवर्तन हुश्रा करते हैं।