पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/६४

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६३ साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ तक था; अतएव उसका दक्षिणी भाग राजपूताने का उत्तरी भाग था। पाश्चात्य पंडित तथा उनके अनुयायी अन्य विद्वान् यह मानते हैं कि पांचाल लोग उन श्रायों में से थे जो पहले भारतवर्ष में श्राए थे; इसलिये उनकी प्राचीन भाषा पहिरंग समुदाय की थी। जव अंतरंग समुदाय की भाषा बोलनेवाले आर्य, जो पीछे भारतवर्ष में आए, अधिक शक्ति संपन्न होकर चारों ओर फैलने लगे, तब उन्होंने यहिरंग भापानों के स्थान में बसे हुए पार्यों को दक्षिण की ओर खदेड़ना प्रारंभ कर दिया। इसी प्रकार अंतरंगवासी आर्य बहिरंग आर्यों को चीरते हुए गुजरात की और चले गए और समुद्र के किनारे तक वस गए। महाभारत के समय में द्वारका का उपनिवेश स्थापित हुश्रा था और उसके पीछे कई पार श्रार्य लोग राध्य देश से जाकर वहाँ घसे थे। डाक्टर ग्रियर्सन का अनुमान है कि ये लोग राजपूताने के मार्ग से गए होंगे क्योंकि सीधे मार्ग से जाने में मरु देश पडता था जहाँ का मार्ग बहुत कठिन था। पीछे की शताब्दियों में आर्य लोग मध्य देश से जाकर राजपूताने में बसे थे। बारहवीं शताब्दी में राठौरों का कन्नौज छोड़कर मारवाड़ में वसना इतिहास प्रसिद्ध बात है। जयपुर के कछवाहे वध से और सोलंकी पूर्वी पंजाब से राजपूताने में गए थे। यादव लोग मथुरा से जाकर, गुजरात में बसे थे। इन बातों से यह स्पष्ट श्रनुमान होता है कि मध्य देश से जाकर आर्य लोग गंगा के दोभावे से लेकर गुजरात में समुद्र के किनारे तक वस गए थे और यहां के बसे हुए पूर्ववर्ती पार्यों को उन्होंने खदेड़कर हटा दिया था। इससे यह भी स्पष्ट है कि श्राधुनिक राज. स्थानी भाषा बोलनेवाले मध्य देश के परवर्ती प्रार्य थे, और ऐसी दशा में उनकी भाषा में बहिरंग भापात्रों का कुछ कुछ प्रभाव वाकी रह जाना स्वाभाविक ही है। राजस्थानी भाषा की चार वोलियाँ हैं-मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती और मालवी। इनके अनेक भेद उपभेद हैं। मारवाड़ी का पुराना साहित्य डिंगल नाम से प्रसिद्ध है। जो लोग ब्रजभाषा में कविता करते थे, उनकी भाषा पिंगल कहलाती थी; और उससे भेद फरने के लिये मारवाड़ी भापा का उसी की धनि पर गढ़ा हुश्रा डिंगल नाम पड़ा। जयपुरी में भी साहित्य है। दादूदयाल और उनके शिष्यों की वाणी इसी भाषा में है। मेवाती और मालवी में किसी प्रकार के साहित्य का पता नहीं चला है। इन भिन्न भिन्न वोलियों की बनावट पर ध्यान देने से यह प्रकट होता है कि जयपुरी और मारवाडी गुजराती से, मेवाती ब्रजभाषा से और मालवी बुंदेलखंडी से बहुत मिलती