पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/६७

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हिंदी भाषा हिंदी में जब कोई सकर्मक क्रिया सामान्य भूतकाल में प्रयुक्त होती है, और कर्म लप्रत्यय रखा जाता है, तब उसका रूप पुल्लिंग का सा होता है, पर गुजराती में कर्म के अनुसार लिंग होता है; जैसे (प०हिं०) 'उसने स्त्री को मारा' (गु०)'तेणे स्त्री ने मारी'। राजस्थानी में दोनों प्रकार के प्रयोग होते है। ऊपर जो कुछ कहा गया है, उसका सारांश यही है कि राजस्थानी भापा पर गुजराती का बहुत प्रभाव पड़ा है। संज्ञानों के फारक रूपों में यह गुजराती से बहुत मिलती है, पश्चिमी हिंदी से नहीं। राज- स्थानी की विभक्तियाँ अलग ही हैं। जहाँ कहीं समानता है, वहाँ गुजराती से अधिक है, पश्चिमी हिंदी से कम। (२) अवधी-इस भापा का प्रचार अवध, श्रागरा प्रदेश, घघेल. खंड, छोटा नागपुर और मध्य प्रदेश के कई भागों में है। इसकी प्रचार- सीमा के उत्तर में नेपाल की पहाड़ी भापाएँ, पश्चिम में पश्चिमी हिंदी, पूर्व में विहारी तथा उड़िया और दक्षिण में मराठी भाषा बोली जाती है। अवधी के अंतर्गत तीन मुख्य बोलियाँ है-श्रवधी, घघेली और छत्तीसगढ़ी। अवधी और यघेली में कोई अंतर नहीं है। यघेलखंड में चोली जाने के ही कारण यहाँ अवधी का नाम यधेलो पड़ गया है। छत्तीसगढ़ी पर मराठी और उड़िया का प्रभाव पड़ा है और इस कारण वह अवधी से कुछ बातों में भिन्न हो गई है। हिंदी साहित्य में अवधी भापा ने एक प्रधान स्थान ग्रहण किया है। इसके मुख्य दो कवि मलिक मुहम्मद जायसी और गोस्वामी तुलसीदासजी हैं। मलिक मुहम्मद ने अपने ग्रंथ पद्मावत का प्रारंभ संवत् १५१७ में और गोस्वामी तुलसी. दासजी ने अपने रामचरितमानस का प्रारंभ संवत् १६३१ में किया था। दोनों में ३०-३५ वर्ष का अंतर है। पर पद्मावत की भापा अपने शुद्ध रूप में, जैसी वह बोली जाती थी, वैसी ही है; और गोस्वामी तुलसी- दासजी ने उसे साहित्यिक रूप देने का सफलता पूर्ण उद्योग किया है। अवधी के भी दो रूप मिलते हैं-एक पश्चिमी, दूसरा पूर्वी। पश्चिमी अवधी लखनऊ से कन्नौज तक बोली जाती है। अतएव प्रजभांपा की सीमा के निकट पहुँच जाने के कारण उसका इस पर बहुत प्रभाव पड़ा है और यह उससे अधिक मिलती है। पूर्वी अवधी गोंडे और अयोध्या के पास बोली जाती है। यहाँ की भाषा शुद्ध अवधी है। इस विभेद फो स्पष्ट करने के लिये हम दोनों के तीन सर्वनामों के रूप यहाँ देते हैं।