पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/८७

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साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ ८७ यदि हम वितंडावाद के नाम से पुकारे तो अनुचित न होगा। श्रस्तु, नामदेव को छोड़ भी दिया जाय तो हमें खड़ी बोली का सबसे पहला कवि अमीर खुसरो मिलता है जिसका जन्म सं० १३१२ में और मृत्य संवत् १३८१ में हुई थी। अमीर खुसरो ने मसनवी खिज्र-नामः में, जिसमें मुख्यतः सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र खिज्र खां और देवल देवी के प्रेम का वर्णन है, हिंदी भाषा के विषय में जो कुछ लिखा है, इस अवसर पर वह उल्लेख के योग्य है। वे लिखते हैं- "मैं भूल में था; पर अच्छी तरह सोचने पर हिंदी भाषा फारसी से कम नहीं ज्ञात हुई। अरवी के सिवा, जो प्रत्येक भाषा की मीर और सवों में मुख्य है, रई (अरव का एक नगर) और रूम की प्रचलित भाषाएँ समझने पर हिंदी से कम मालूम हुई। श्ररवी अपनी वोली में दूसरी भाषा को नहीं मिलने देती, पर फारसी में यह कमी है कि बिना मेल के यह काम में श्राने योग्य नहीं होती। इस कारण कि वह शुद्ध है और यह मिली हुई है, उसे प्राण और इसे शरीर कह सकते हैं। शरीर में सभी वस्तुओं का मेल हो सकता है, पर प्राण से किसी का नहीं हो सकता। यमन के मूंगे से दरी के मोती की उपमा देना शोभा नहीं देता। सबसे अच्छा धन वह है जो अपने कोप में विना मिलावट के हो; और न रहने पर मांगकर पूँजी बनाना भी अच्छा है। हिंदी भाषा भी श्ररवी के समान है; क्योंकि उसमें भी मिलावट का स्थान नहीं है।" खुसरो ने हिंदी और अरबी-फारसी शब्दों का प्रचार बढ़ाने तथा हिंद-मुसलमानों में परस्पर भाव-विनिमय में सहायता पहुँचाने के उद्देश्य से खालिकवारी नाम का एक कोप पद्य में बनाया था। कहते हैं कि इस कोप की लाखों प्रतियाँ लिखवाकर तथा ऊँटों पर लदवाकर सारे देश में बांटी गई थीं। श्रतएव श्रमीर खुसरो खड़ी बोली के श्रादि-कवि ही नहीं हैं, परन् उन्होंने हिंदी तथा फारसी अरबी में परस्पर श्रादान-प्रदान में भी अपने भरसक सहायता पहुँचाई है। विक्रम की १४वीं शताब्दी की खड़ी बोली की कविता का नमूना खुसरो की कविता में अधिकता से मिलता है। जैसे- टट्टी तोड़ के घर में पाया । धरतन बरतन सब सरकाया || खा गया, पी गया, दे गया बुत्ता। ए सखि साजन? ना सखि कुत्ता ।। स्याम बरन की है एक नारी। माथे ऊपर लागै प्यारो |